मंदिरों में क्यों लगाई जाती थी कामुक मूर्तियाँ - Why were erotic idols in temples? इसमें मंदिरों के अंदर लगी कामुक मूर्तियों के बारे में जानकारी दी है।
पुराने समय में शृंगार रस को बृह्म का अंश माना जाता था जिस वजह से शृंगार रस को दर्शाती कामुक प्रतिमाओं को मंदिरों में स्थापित किया जाता था। ऐसी प्रतिमाओं को गर्भगृह और मंडप की बाहरी दीवारों पर बनाया जाता था।
मंदिरों में गर्भगृह की बाहरी दीवारों और गर्भगृह की द्वार शाखाओं यानी चौखट पर मुख्य देवता के विभिन्न रूपों को दर्शाया जाता है। गर्भगृह के पास गंगा और यमुना जैसी देवियों की मूर्तियाँ होती हैं।
नौ मांगलिक ग्रहों यानी नवग्रहों के साथ यक्षों को दरवाजों की सुरक्षा के लिए प्रवेश द्वार पर रखा जाता है। आठ दिशाओं के स्वामी यानी अष्टदिग्पालों को गर्भगृह और मंदिर की बाहरी दीवारों पर रखा जाता है।
पंचायतन शैली के मंदिरों में छोटे बड़े कुल पाँच मंदिर होते हैं। ये मंदिर एक वर्गाकार जगती पर बने होते हैं जिनमें मुख्य मंदिर बीच में और चारों कोनों पर यानी चारों दिशाओं में चार छोटे मंदिर होते हैं। इन मंदिरों में मुख्य देवता के अवतारों या परिवारजनों की मूर्तियाँ होती हैं।
मंदिरों में मूर्तियाँ छवि और प्रतीकात्मक रूप में होती हैं। भगवान शिव की ज्यादातर प्रतिमाएँ लिंग रूप में प्रतीकात्मक हैं जबकि भगवान विष्णु की ज्यादातर मूर्तियाँ छवि के रूप में हैं। देवी की मूर्तियाँ दोनों रूपों में मिल जाती हैं।
ज्यादातर मूर्तियाँ इंसानों द्वारा पत्थर या धातु से बनाई हुई होती हैं लेकिन कई जगह ये प्राकृतिक भी होती हैं जिन्हें स्वयंभू कहा जाता है। स्वयंभू प्रतिमाएँ ज्यादातर शिव और देवी की ही होती हैं।
सामान्यतः मंदिरों या घरों में मूर्तिपूजा करते समय खंडित मूर्तियाँ काम में नहीं ली जाती हैं। मंदिरों का निर्माण भगवान के दर्शन और पूजा करने के लिए हुआ है इसलिए दर्शन और पूजा का समय भी निश्चित होता है।
मंदिर की मूर्ति को भगवान का विग्रह माना जाता है यानी इसमें भगवान का निवास माना जाता है इसलिए उनके जागरण, शयन और भोजन आदि का समय भी तय होता है।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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