एक ही वंश के थे भगवान राम और जैन तीर्थंकर! - Shri Ram and Tirthankaras of Ayodhya, इसमें इक्ष्वाकुवंश के तीर्थंकरों और श्रीराम के बारे में जानकारी है।
जैन धर्म में तीर्थंकर परंपरा की शुरुआत पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ यानी ऋषभदेव से हुई जो अयोध्या के राजा नाभि के पुत्र थे। अयोध्या में इनके अलावा अजितनाथ (दूसरे), अभिनंदननाथ (चौथे), सुमतिनाथ (पाँचवें) और अनंतनाथ (चौदहवें) जैसे चार तीर्थंकरों का जन्म और हुआ था।
इसलिए हम कह सकते हैं कि हिन्दू और जैन धर्म में अयोध्या का काफी ज्यादा धार्मिक महत्व है। भगवान आदिनाथ का जन्म चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की नवमी को हुआ।
इन्होंने ही इक्ष्वाकुवंश की स्थापना की जिसमें सभी जैन तीर्थंकरों का जन्म हुआ और कई पीढ़ियों के बाद इस वंश में ही भगवान श्रीराम का जन्म भी हुआ। इस तरह भगवान श्रीराम और जैन धर्म के तीर्थंकरों की जड़ें एक ही वटवृक्ष से ही निकली हुई हैं।
इक्ष्वाकुवंश का नाम इक्षु यानी गन्ने से आया है क्योंकि सरयू नदी के किनारे पर बसे अयोध्या के निवासी गन्ने की खेती करके उसका रस निकालना जानते थे, शायद इसी वजह से भगवान ऋषभदेव ने अपना 400 दिन का उपवास अक्षय तृतीय के दिन गन्ने से तोड़ा था।
वाल्मीकि रामायण में भी बताया है कि महर्षि भारद्वाज के आश्रम में जब भगवान राम के छोटे भाई भरत की सेना गई तब उनके घोड़ों को गन्ना खिलाया गया था। इक्ष्वाकु कुल के राजाओं को सूर्यवंशी भी कहा जाता है।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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