शूरवीर और पराक्रमी योद्धा हालूजी चौहान - Rawat Haluji Chauhan Garh Smarak, इसमें राजसमंद में बरजाल के योद्धा हालूजी चौहान के बारे में जानकारी दी गई है।
रावत राजपूतों का इतिहास वीरता और साहस से जुड़ा हुआ है जिसकी वजह से क्षत्रिय समाज में इनकी एक विशेष पहचान है। रावत राजपूतों में हालूजी चौहान नाम के एक शूरवीर और पराक्रमी योद्धा हुए हैं जिनका इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है।
राजसमंद में देवगढ़ के पास बरजाल नाम की जगह के निवासी होने के कारण इन्हें हालुजी बरजालिया के नाम से भी जाना जाता है। इनके बारे में प्रसिद्ध है कि इन्होंने जीते जी किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की थी।
इतिहास में बताया जाता है कि 17वीं शताब्दी में देवगढ़ के सामंत बरजाल की पहाड़ी पर एक किला बनवाना चाहते थे जिसका हालुजी ने यह कहकर विरोध किया कि अगर पहाड़ी पर किला बना तो गंदगी बहकर नीचे आएगी।
सामंतों ने हालुजी के विरोध को नजरंदाज करके किला बनवाना शुरू किया जिससे संघर्ष की स्थिति बन गई। हुआ यूँ कि सामंत दिन के समय जितना किला बनवाते, रात के समय हालुजी उसे गिरा देते।
जब ऐसा बार-बार हुआ तो सामंतों ने थक हारकर पहाड़ी पर किला अधूरा ही छोड़ दिया और इस पहाड़ी से 5 किलोमीटर दूर देवगढ़ में अपना निवास बनाया।
सामंतों ने इस पहाड़ी को छोड़ते समय हालुजी को कुलदेवी आशापुरा माताजी की सौगंध दिलाकर किले को हाथ नहीं लगाने का वचन लिया। हालुजी ने वचन निभाया और किले को हाथ ना लगाकर कमर पर कपड़ा बाँधकर इसके काफी हिस्से को गिरा दिया।
इस तरह हालुजी ने पहाड़ी पर किला नहीं बनने दिया। आज भी बरजाल की पहाड़ी पर यह आधा अधूरा किला मौजूद है जिसकी कुछ बुर्जों के अवशेष अब भी दिखाई देते हैं।
हालुजी के वंशज इस पहाड़ी के चारों तरफ रहते हैं। साल 2003 में इस किले की एक बुर्ज पर रावत हालुजी चौहान की एक प्रतिमा लगाई गई और इस जगह को हालुजी चौहान गढ़ स्मारक कहा जाने लगा।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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