त्रिवेणी धाम के संत गंगादास जी महाराज - Ganga Das Ji Maharaj, इसमें शाहपुरा के पास त्रिवेणी धाम को स्थापित करने वाले संत गंगा दासजी की जानकारी है।
श्री गंगादास जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1771 में सीकर जिले के अजीतगढ़ कस्बे के निकट अथौरा ग्राम में हुआ। इनके पिता का नाम मनोहर सिंह था जो यहाँ के जागीरदार थे। माता का नाम मगन कुंवरी था।
इन्होंने संगोपांग योग की शिक्षा ली और अष्टांग योग की सभी सिद्धियाँ प्राप्त की। साथ ही अणिमा सिद्धि, महिमा सिद्धि, लघिमा सिद्धि, प्राप्ति सिद्धि, प्राकाम्य सिद्धि, ईशित्व सिद्धि, वशिता सिद्धि, कामवसायिता सिद्धि, दूर श्रवण सिद्धि, मनोजव सिद्धि, परकाय प्रवेश सिद्धि आदि अनेक सिद्धियों को प्राप्त कर ये सिद्ध महापुरुष बन गए।
इन्होंने बारह वर्षों तक जगदीशजी की पहाड़ियों में जाकर तपस्या की और अपना लक्ष्य प्राप्त किया। यहाँ से ये पुनः गंगाजी के किनारे पर आए और यहीं पर तपस्या करने लगे। यहाँ पर तीन धाराओं के संगम की वजह से यह स्थान त्रिवेणी धाम के नाम से विख्यात हुआ।
इन तीन धाराओं में एक धारा जगदीशजी के पहाड़ों से, दूसरी पश्चिम की तरफ से एवं तीसरी धारा को स्वयं गंगादासजी ने प्रकट किया था। ऐसा माना जाता है कि यह पानी इतना पावन है कि इसके स्पर्श मात्र से ही सभी पाप धुल जाते हैं।
गंगादासजी की आज्ञा से इनके शिष्य जानकी दास जी महाराज ने भगवान नृसिंह का मंदिर बनवाया एवं इसमें विक्रम संवत 1814 की वैशाख सुदी चतुर्दशी के दिन स्वहस्त निर्मित नृसिंह भगवान की मूर्ति स्थापित की।
गंगादास जी त्रिवेणी के तट पर स्थित उस पहाड़ी पर बैठ कर प्रभु का चिंतन करते थे जहाँ पर जगतगुरु स्वामी रामानंदाचार्य जी महाराज की चरण पादुकाएँ मौजूद हैं।
अपने माता पिता को वंश वृद्धि के लिए चिंतित देखकर एक दिन इन्होंने अपनी माताजी से दूसरे पुत्र की प्राप्ति के लिए कह दिया। इनकी सिद्ध वाणी की वजह से इन्हें एक भाई की प्राप्ति हुई जिसका नाम परबत सिंह रखा गया।
परबत सिंह की पत्नी अपने पति की मृत्यु के पश्चात उनके जीवन की पुनः प्राप्ति के लिए इनके पास आई और अपने पति के लिए जीवन दान माँगा तब इन्होंने त्रिवेणी धाम में आकर कार्तिक सुदी षष्टी विक्रम संवत 1840 को समाधि लेकर अपनी आयु अपने अनुज को प्रदान कर दी।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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