कुम्भ और महाकुंभ में क्या फर्क है? - Difference between Kumbh and Maha Kumbh, इसमें कुम्भ के अर्थ के साथ इसके इतिहास, प्रकार और स्नान की जानकारी दी है।
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भारत में कुम्भ के मेले का धार्मिक रूप से बहुत ज्यादा महत्व है। आज हम कुम्भ मेले का अर्थ, इसके प्रकार और जगह, स्नान आदि के साथ आध्यात्मिक महत्व के बारे में बात करेंगे।
कुम्भ का मेला कहाँ कहाँ लगता है?
अगर हम कुम्भ का अर्थ देखें तो इसका मतलब घड़ा होता है। भारत में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में जो कुम्भ का मेला भरता है उसका भी घड़े से कोई न कोई रिश्ता जरूर है।
इस रिश्ते को समझने के लिए हमें समुद्र मंथन की कहानी का संक्षेप में पता होना चाहिए। इस कहानी के अनुसार जब देवताओं और असुरों ने मिलकर वासुकी नाग की सहायता से समुद्र का मंथन किया था तब उसमें से भगवान धन्वंतरि अमृत कुम्भ या अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे।
इस अमृत के कुम्भ को लेने के लिए देवताओं और असुरों में युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान इस अमृत कुम्भ से अमृत की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गई।
धरती पर जिन जगहों पर ये अमृत की बूंदे गिरी उन जगहों पर कुम्भ का मेला लगता है। अमृत की ये बूंदे प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थी जिस वजह से इन जगहों पर कुम्भ का मेला लगता है।
कुम्भ का मेला कितने प्रकार का होता है और ये कितने सालों में लगता है?
अब हम बात करते हैं कि कुम्भ का मेला कितने प्रकार का होता है और ये कितने सालों में लगता है।
इस 12 साल के राशि चक्र में यह हर साल एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है जिस वजह से कुछ नदियों में कुम्भ का मेला लगता है।
चूँकि बृहस्पति गृह राशि चक्र का चक्कर 12 साल में पूरा करता है इसलिए एक स्थान पर कुम्भ का मेला हर 12 साल के बाद भरता है। इस मेले को पूर्ण कुम्भ कहते हैं।
12 पूर्ण कुम्भ के बाद आने वाले कुम्भ को महाकुंभ कहा जाता है यानी हर जगह पर महाकुंभ 144 साल बाद आता है। कुछ जगहों पर 6 साल के बाद भी कुम्भ का मेला भरता है जिसे अर्ध कुम्भ कहा जाता है।
सभी महाकुंभों में केवल प्रयागराज वाले महाकुंभ को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है क्योंकि इस जगह पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का त्रिवेणी संगम होता है।
कुम्भ में कितने स्नान होते हैं और उनका क्या महत्व है?
अब हम बात करते हैं कि कुम्भ में कितने स्नान होते हैं और उनका क्या महत्व है।
हमारे धार्मिक ग्रंथों में पंचस्नान बताए गए हैं जो जल स्नान, प्राण स्नान, मंत्र स्नान, नाद स्नान और ध्यान स्नान के रूप में किए जाते हैं। साथ ही मनुष्य के स्थूल शरीर को अन्न, प्राण, मन, बुद्धि और अहंकार जैसे पाँच कोशों से बना हुआ माना गया है।
जिस तरह से हमारे शरीर को भोजन के रूप में पोषण चाहिए ठीक उसी तरह इन पंचकोशों को भी पोषण देना जरूरी है।
कुम्भ में जो कुल पाँच स्नान होते हैं वो इन पंचकोश के पोषण से जुड़े हुए हैं। जल स्नान से शरीर में पवित्रता आती है। प्राण स्नान का संबंध प्राण ऊर्जा से है जिसमें प्राण वायु के रूप में शरीर को पोषण मिलता है।
मंत्र स्नान में मंत्रों का जाप करने से मन में एकाग्रता आती है। नाद स्नान विज्ञानमय कोश से जुड़ा है जिससे बुद्धि और ज्ञान जुड़े रहते हैं।
दरअसल नाद स्नान ॐ का उच्चारण है जो कि एक ब्रह्मांड के विस्फोट के समय निकालने वाली ध्वनि थी और जिसकी तरंगे आज तक ब्रह्मांड में मौजूद हैं।
ध्यान स्नान शरीर की सबसे शुद्ध अवस्था है जिसमें आत्मा को पोषण मिलता है जिससे आत्मा को परमानन्द मिलता है।
प्रयागराज महाकुंभ का वीडियो - Video of Prayagraj Mahakumbh
प्रयागराज महाकुंभ की फोटो - Photos of Prayagraj Mahakumbh
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
डिस्क्लेमर (Disclaimer)
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