देवयानी को कहते हैं सब तीर्थों की नानी - Devyani Sarovar and Sharmishtha Kund, इसमें सांभर में मौजूद देवयानी और शर्मिष्ठा कुंड के बारे में जानकारी है।
महाभारत काल में सांभर क्षेत्र पर असुर राजा वृषपर्व का राज था और यहाँ पर असुरों के कुलगुरु शुक्राचार्य निवास करते थे। इसी जगह पर शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी का विवाह राजा ययाति के साथ हुआ था। बाद में इनका विवाह दैत्यराज वृषपर्व की पुत्री शर्मिष्ठा से भी हुआ।
आज भी सांभर झील के एक किनारे पर राजा ययाति की इन दोनों पत्नियों देवयानी और शर्मिष्ठा के नाम पर दो कुंड बने हुए हैं। देवयानी कुंड को पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। कुंड में चारों तरफ एक दर्जन से ज्यादा घाट बने हुए हैं और कई मंदिर बने हुए हैं जिनमें एक मंदिर देवयानी का खुद का भी है।
इन मंदिरों में 9 ब्राह्मण परिवार पूजा अर्चना करते हैं। सरोवर में कई जीव जन्तु रहते हैं जिनमें मछलियाँ, साँप आदि शामिल हैं। देवयानी दैत्यगुरु शुक्राचार्य की पुत्री थी जिस वजह से इस कुंड को सभी तीर्थों की नानी का दर्जा दिया गया है।
देवयानी सरोवर में कार्तिक के महीने में व्रत करने वाली महिलाएँ विशेष रूप से स्नान करने आती हैं। यह पवित्र स्नान कार्तिक की देवउठनी एकादशी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है।
बताया जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद अश्वथामा ने इस जगह पर तपस्या करके स्नान किया था। कुंड पर आज भी अश्वथामा का चबूतरा बना है और बताया जाता है कि इस चबूतरे पर बैठकर ही उन्होंने तपस्या की थी।
सरोवर के किनारे पर आमेर के राजाओं द्वारा बनवाया गया शीशमहल भी बना हुआ है। शीशमहल की नक्काशी और खंभे आज भी अपनी प्राचीन सुंदरता को दर्शाते हैं।
देवयानी सरोवर से थोड़ा आगे शर्मिष्ठा सरोवर बना हुआ है। जैसा कि हमने आपको बताया कि शर्मिष्ठा दैत्यराज वृषपर्व की पुत्री थी जिनका विवाह भी राजा ययाति के साथ हुआ था। शर्मिष्ठा सरोवर को भी बड़ा पवित्र माना जाता है लेकिन देवयानी सरोवर के सामने इसका महत्व काफी कम रह गया है।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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