आयड़ सभ्यता को प्रदर्शित करता म्यूजियम - Ayad Sabhyata and Museum, इसमें उदयपुर के धूलकोट में मौजूद पाँच हजार साल पुरानी सभ्यता के बारे में जानकारी है।
उदयपुर में लगभग चार से पाँच हजार साल पहले आयड़ या बेड़च नदी के किनारे पर एक सभ्यता विकसित होकर फली फूली जिसे आयड़ सभ्यता और बेड़च सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
आयड़ (Ayad) या आहर (Ahar) को प्राचीन काल में समय-समय पर ताम्बवती या ताम्रवती, अघाटपुर (Aghatpur), अघाटदुर्ग (Aghatdurg) आटपुर (Aitpoor), आनंदपुर (Anandpura), गंगोद्भव तीर्थ (Gangodbhav Tirth) जैसे कई नामों से जाना जाता रहा है।
वर्तमान में धूलकोट एरिया में आयड़ नदी के पास वह टीला मौजूद है जहाँ से खुदाई करने पर आयड़ सभ्यता के अवशेष मिले थे। पुरातत्व विभाग ने अब इस टीले की सुरक्षा के लिए इसके चारों तरफ दीवार बना दी है।
प्रवेश द्वार से अन्दर जाने पर कुछ आगे सामने दाँई तरफ खुदाई स्थल है जहाँ पर प्राचीन सोकपिट बना हुआ है। यह तत्कालीन समय में गंदे पानी को घरों से निकालने की वैज्ञानिक पद्धति को प्रदर्शित करता है।
वर्ष 1951-52 में स्वर्गीय अक्षय कीर्ति व्यास द्वारा इस टीले का उत्खनन किया गया। वर्ष 1960-61 में स्वर्गीय डॉ एच डी संकालिया के नेतृत्व में यहाँ के सांस्कृतिक अनुक्रम को उद्घाटित करने का कार्य किया गया।
यहाँ से प्राप्त सफ़ेद रंग से चित्रित काले एवं लाल रंग के पात्रों को उनकी विशेष बनावट व तकनीक के आधार पर प्रथम बार इस संस्कृति को आहड़ संस्कृति का नाम दिया गया।
आहड़ संस्कृति के निर्माता 5000 ईस्वी पूर्व से 1500 ईस्वी पूर्व के दौरान अरावली के इस क्षेत्र में विचरण कर रहे थे। वे लोग इस क्षेत्र के प्रथम किसान थे।
मेवाड़ क्षेत्र में 80 से अधिक आहड़ बनास संस्कृति के पुरास्थल खोजे गए हैं जिनमें से अधिकांश पुरास्थल गंभीरी, कोठारी, बनास, बेडच, खारी एवं इनकी सहायक नदियों के किनारे पर स्थित हैं।
आहड़ बनास संस्कृति के पुरास्थलों के उत्खनन से प्राप्त प्राचीन पुरावशेषों को संरक्षित एवं प्रदर्शित करने के लिए वर्ष 1960 में राजस्थान सरकार के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने एक पुरातत्व संग्रहालय का निर्माण करवाया।
उदयपुर का यह संग्रहालय समय के साथ विभिन्न प्रकार के पुरावशेषों से समृद्ध होता गया। इस संग्रहालय में विभिन्न प्रकार के प्रागैतिहासिक उपकरण, विभिन्न प्रकार के मृद्पात्र, आहड़ के निवासियों की सांस्कृतिक सामग्री जैसे लघु पाषाण उपकरण, ताम्र निर्मित सामग्री, मणके, पकी मिट्टी की मूर्तियाँ एवं तृतीय सदी ईस्वी से द्वितीय सदी ईस्वी के स्तर की ऐतिहासिक सामग्री भी प्रदर्शित की गई है।
इस संग्रहालय में विभिन्न प्रकार की 7-8वीं सदी तक की मूर्तियों का संग्रह भी है। इन मूर्तियों में आहड़ एवं दक्षिण पूर्वी राजस्थान से प्राप्त विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियाँ शामिल हैं।
संग्रहालय में लघु चित्र भी प्रदर्शित किये गए हैं जो तत्कालीन लोगों की कला एवं सृजनात्मकता के बारे में बताते हैं। संग्रहालय में अस्त्र शस्त्रों को भी प्रदर्शित किया गया है। इस संग्रहालय में 8वीं से लेकर 18वीं शताब्दी तक की प्रतिमाएँ प्रदर्शित की गई है।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
डिस्क्लेमर (Disclaimer)
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