शाकंभरी माता के पास क्यों है जहांगीर की छतरी? - Shakambhari Mata, इसमें शाकंभरी माता मंदिर को तोड़ने आए बादशाह जहांगीर के बीरे में जानकारी दी गई है।
शाकंभरी माता मंदिर का इतिहास मुगल बादशाह जहांगीर से भी हुआ है। बताया जाता है कि जब मुगल सेना मंदिर को नष्ट करने आई तब माता की आँखों में से भँवरों का एक झुंड निकला जिसने मुगल सेना पर हमला करके उसे भगा दिया।
जब इस बात का पता बादशाह को चला तो उसे भरोसा नहीं हुआ और वह खुद यहाँ आया। आने पर उसे पता चला कि इस जगह पर तो मूर्ति के रूप में पूरे पहाड़ की ही पूजा हो रही है इसलिए मूर्ति को खंडित नहीं किया जा सकता है क्योंकि अगर मूर्ति को खंडित करना है तो पूरे पहाड़ को ही तोड़ना पड़ेगा।
बादशाह ने इसका उपाय पूछा तो उसे बताया गया कि अगर मूर्ति की जगह यहाँ जल रही अखंड ज्योति को बंद कर दिया जाए तो मंदिर की पवित्रता नष्ट हो जाएगी।
बादशाह ने मंदिर में जल रही अखंड ज्योति को बंद करने के लिए उस पर लोहे के सात मोटे तवे रखवा दिए लेकिन यह ज्योत नहीं बंद हुई बल्कि इन तवों को पार करके भी जलने लगी।
ये सब कुछ देखकर बादशाह ने माता के चमत्कार के सामने अपना शीश झुक लिया। इसके बाद बादशाह ने मंदिर के पीछे पहाड़ी पर एक छतरी का निर्माण करवाया जिसे आज भी जहांगीर की छतरी कहा जाता है।
यह छतरी मंदिर के पीछे पहाड़ी के ऊपर बनी हुई है जहाँ पर जाने के लिए पक्की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। छतरी के अंदर उस समय का एक शिलालेख भी लगा हुआ है।
छतरी से सांभर झील का दूर-दूर तक सुंदर नजारा होता है। झील में जब पानी कम होता है तब चारों तरफ दूर-दूर तक नमक मिली हुई सफेद जमीन दिखाई देती है।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
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