नमक की झील के बीच माता का चमत्कारी मंदिर - Shakambhari Mata Mandir Sambhar in Hindi, इसमें सांभर झील के बीच शाकंभरी माता के मंदिर की जानकारी दी गई है।
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आज हम आपको माता के एक ऐसे चमत्कारी मंदिर की यात्रा करवाने वाले हैं जो कई किलोमीटर एरिया में बिखरी कच्ची चाँदी के बीच में एक पहाड़ी के नीचे बना हुआ है।
चौहान राजपूतों की पुरानी राजधानी में बना हुआ यह मंदिर उनकी कुलदेवी का है जो लगभग ढाई हजार साल पुराना है, इसमें मुख्य रूप से माताजी के घुटनों की पूजा होती है।
माता को वनस्पति और प्रकृति की देवी के रूप में पूजा जाता है इसलिए इनके केवल हरी सब्जियों और फलों का ही भोग लगाया जाता है। माताजी हरी सब्जियों से प्रसन्न होती है।
इस मंदिर को नुकसान पहुँचाने के लिए मुगल बादशाह जहांगीर खुद आया था लेकिन उसने भी माता का चमत्कार देखकर इनके सामने अपना शीश झुका लिया था।
तो आज हम दुर्गा माता के अवतार वाली शाकंभरी माता के इस चमत्कारी मंदिर की यात्रा करके इसके इतिहास के बारे में जानते हैं, आइए शुरू करते हैं।
शाकंभरी माता मंदिर क्यों प्रसिद्ध है? - Why is Shakambhari Mata Temple famous?
भारत में सबसे ज्यादा नमक पैदा करने वाली खारे पानी की सांभर झील के बीच में यह सिद्ध शक्ति पीठ मौजूद है जिसे शाकंभरी के अलावा सांभवी और समराय माता के नाम से भी जाना जाता है।
सांभर झील के बीच में एक पहाड़ी है, जिसके एक कोने पर माता का मंदिर बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि देवी की प्रतिमा पहाड़ से प्रकट हुई थी इसलिए पहाड़ को ही एक तरह से देवी के रूप में पूजा जाता है।
नमक की इस झील के बीच में मंदिर तक जाने के लिए सड़क बनी हुई है। मंदिर के पहले तोरण द्वार को पार करके आगे जाने पर यात्रियों के रुकने के लिए कुछ धर्मशालाएँ बनी हुई हैं।
थोड़ा आगे कल्पना पूरी करने वाला कल्पवृक्ष लगा हुआ है। मंदिर के बिल्कुल सामने एक कुंड बना हुआ है जिसमें पानी भरा हुआ है।
सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर जाने पर माताजी का मंदिर है। अंदर जाने पर सामने गर्भगृह में माताजी विराजती हैं। गर्भगृह के अंदर काँच की सुंदर कारीगरी की हुई है।
माताजी की शृंगारित प्रतीकात्मक प्रतिमा काफी बड़ी और भव्य है। श्रद्धालुओं को माता की इस प्रतीकात्मक प्रतिमा के ही दर्शन हो पाते हैं लेकिन ये माता की स्वयंभू प्रतिमा नहीं है।
माता की मूल स्वयंभू प्रतिमा इस प्रतीकात्मक प्रतिमा के शृंगार के पीछे छिप जाती है इसलिए श्रद्धालुओं को माता की मूल प्रतिमा के दर्शन ना होकर इस प्रतीकात्मक प्रतिमा के ही दर्शन हो पाते हैं।
बताया जाता है कि इस मंदिर में पहाड़ से निकली माता की स्वयंभू प्रतिमा के घुटने की पूजा होती है। गर्भगृह के अंदर एक प्राचीन सुरंग भी बताई जाती है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह अजमेर में तारागढ़ तक जाती है। कहते हैं कि यह प्राचीनकाल से ही बंद है।
गर्भगृह के बाहर माताजी के वाहन शेर विराजमान हैं। माता के मंदिर में दो शिव मंदिर बने हुए हैं जिनमें एक छोटा और दूसरा बड़ा है।
मंदिर के सामने झील के अंदर लाखड़िया भैरव का मंदिर बना हुआ है। पहले इनको लांगड़िया भैरव कहा जाता था। कहते हैं कि माता के दर्शन के बाद इनके दर्शन करने जरूरी हैं नहीं तो माता के दर्शन अधूरे माने जाते हैं।
मंदिर के पीछे इससे सटी पहाड़ी के ऊपर एक छतरी बनी हुई है जहाँ पर जाने के लिए पक्की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इस छतरी को मुगल बादशाह जहांगीर ने बनवाया था।
छतरी के अंदर उस समय का एक शिलालेख भी लगा हुआ है। छतरी से सांभर झील का दूर-दूर तक सुंदर नजारा होता है। झील में जब पानी कम होता है तब चारों तरफ दूर-दूर तक नमक मिली हुई सफेद जमीन दिखाई देती है।
इस पहाड़ी को छोड़कर पूरी झील में कहीं पर भी हरियाली नहीं है। झील के अंदर आपको कार और बाइक को फुलस्पीड में चलाकर एडवेंचर करते लोग नजर आ जाएँगे।
जब ये तेज स्पीड में वाहन चलाते हैं तो इनके पीछे सफेदी का गुबार उड़ता है जो किसी फिल्म के सीन जैसा नजर आता है। इस झील में आमिर खान की पीके जैसी फिल्म की शूटिंग हो चुकी है।
शाकंभरी माता मंदिर का इतिहास - History of Shakambhari Mata Temple
अगर हम शाकंभरी माता के इतिहास के बारे में बात करें तो इनका इतिहास हजारों साल पुराना है। शाकंभरी माता का जिक्र महाभारत के साथ कई पुराणों में भी हुआ है।
शाकंभरी माता की भारत में तीन सिद्धपीठ हैं जिनमें से दो राजस्थान में और एक उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में मौजूद हैं। राजस्थान में ये पीठ सीकर के सकराय में और जयपुर के सांभर में मौजूद हैं।
ऐसा माना जाता है कि इन तीनों पीठों में सबसे ज्यादा प्राचीन पीठ सांभर की है। किवदंतियों के रूप में इस जगह का इतिहास रामायण काल से लेकर मुगल काल तक मौजूद है।
एक किवदंती के अनुसार रामायण काल में इस जगह पर समुद्र हुआ करता था। लंका जाते समय भगवान राम ने समुद्र पर जो बाण छोड़ा था वह इसी जगह आकर गिरा था।
बाण के प्रभाव से यहाँ के समुद्र का ज्यादातर पानी सूख गया और इसके अवशेष के रूप में सिर्फ यह झील रह गई। उस बाण के प्रभाव से आसपास की जमीन भी रेगिस्तान में बदल गई।
एक दूसरी किवदंती के अनुसार महाभारत काल में इस क्षेत्र पर असुर राजा वृषपर्व का राज था और यहाँ पर असुरों के कुलगुरु शुक्राचार्य निवास करते थे।
इसी जगह पर शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी का विवाह राजा ययाति के साथ हुआ था। बाद में इनका विवाह दैत्यराज वृषपर्व की पुत्री शर्मिष्ठा से भी हुआ। इस घटना का जिक्र महाभारत में भी बताया जाता है।
आज भी सांभर झील के एक किनारे पर राजा ययाति की इन दोनों पत्नियों देवयानी और शर्मिष्ठा के नाम पर दो कुंड बने हुए हैं।
देवयानी कुंड को तीर्थस्थल माना जाता है जिसमे चारों तरफ घाट बने हुए हैं। कुंड के चारों तरफ कई मंदिर बने हुए हैं जिनमें एक मंदिर देवयानी का खुद का भी है।
एक पौराणिक किवदंती के अनुसार दुर्गम नामक राक्षस के कारण इस जगह पर भयंकर अकाल पड़ा और अन्न और जल की कमी से जीव जन्तु मरने लगे। तब दुर्गा माता ने एक नया रूप लेकर यहाँ तपस्या की।
कहते हैं कि माता के आँसुओं की धारा से जमीन पर हरियाली हुई जिससे शाक-सब्जियाँ और फल-फूल पैदा हुए। शाक उत्पन्न करने के कारण माता का नाम शाकम्भरी नाम पड़ा।
पौराणिक काल के बाद इस जगह का इतिहास सातवीं शताब्दी से जुड़ा है जब चौहान वंश के संस्थापक राजा वासुदेव ने अपनी कुलदेवी शाकंभरी माता के नाम पर शाकंभर सपादलक्ष नामक कस्बा बसाया।
बाद में समय के साथ इस कस्बे का नाम बदलकर सांभर हो गया। चौहान राजा अपने आपको संभरीशव यानी शाकंभरीराज कहलाना पसंद करते थे।
सांभर में नमक की झील बनने के पीछे एक किवदंती और प्रचलित है। इस किवदंती के अनुसार चौहान वंश के राजा वासुदेव चौहान की भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें वरदान दिया।
राजा द्वारा धन-संपदा का भंडार मांगे जाने पर माता ने कहा कि वह बिना पीछे देखकर जितनी दूरी तक अपना घोड़ा दौड़ाएँगे, उतनी दूरी तक की जमीन धन-संपदा से भर जाएगी।
कहते हैं कि राजा ने अपना घोड़ा 12 कोस तक दौड़ाने के बाद पीछे मुड़कर देखा तो पूरी जमीन चाँदी की हो गई। बाद में जब राजा को चाँदी के लालच की वजह से होने वाले युद्धों का एहसास हुआ तो उन्होंने माता से यह वरदान वापस लेने को कहा।
माता ने दिया हुआ वरदान वापस लेने में असमर्थता जताई और कहा कि मैं इसे पक्की चाँदी की जगह कच्ची चाँदी में बदल देती हूँ। इसके बाद माता ने चाँदी की इस जमीन को कच्ची चाँदी यानी नमक में बदल दिया।
कहते हैं कि माता के आशीर्वाद से पूरे भारत में सिर्फ सांभर में ही प्राकृतिक रूप से नमक जमता है। आज भी यह झील देश का सबसे ज्यादा नमक पैदा करती है।
इस जगह का इतिहास मुगल बादशाह जहांगीर से भी जुड़ा हुआ है। जब मुगल सेना मंदिर को नष्ट करने आई तो माता की आँखों में से भँवरों का झुंड निकला और उसने मुगल सेना पर हमला करके उसे भगा दिया।
जब यह बात बादशाह ने सुनी तो उसे भरोसा नहीं हुआ और वह खुद यहाँ आया। आने पर उसे पता चला कि यहाँ मूर्ति के रूप में पूरे पहाड़ की ही पूजा हो रही है इसलिए मूर्ति को खंडित नहीं किया जा सकता है।
क्योंकि अगर मूर्ति को खंडित करना है तो पूरे पहाड़ को ही तोड़ना पड़ेगा। बादशाह ने इसका उपाय पूछा तो उसे बताया गया कि मूर्ति की जगह यहाँ जल रही अखंड ज्योति को बंद कर दिया जाए।
बादशाह ने मंदिर में जल रही अखंड ज्योति को बंद करने के लिए उस पर लोहे के सात मोटे तवे रखवा दिए लेकिन यह ज्योत नहीं बंद हुई बल्कि इन तवों को पार करके भी जलने लगी।
ये सब कुछ देखकर बादशाह ने माता के चमत्कार के सामने अपना शीश झुक लिया। इसके बाद बादशाह ने मंदिर के पीछे पहाड़ी पर एक छतरी का निर्माण करवाया जिसे आज भी जहांगीर की छतरी कहा जाता है।
शाकंभरी माता मंदिर में उत्सव - Celebrations at Shakambhari Mata Temple
माता के मंदिर में भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमी यानी राधाष्टमी को विशाल मेला भरता है जिसमें पूरे भारत से श्रद्धालु आते हैं। चैत्र और अश्विन के महीने में नवरात्रि पर भी यहाँ काफी श्रद्धालु आते हैं।
शाकंभरी माता मंदिर के पास घूमने की जगह - Places to visit near Shakambhari Mata Temple
अगर हम शाकंभरी माता मंदिर के पास घूमने की जगह के बारे में बात करें आप देवयानी कुंड, शर्मिष्ठा कुंड, संत दादूदयाल की साधना स्थली के साथ सांभर झील में कई एडवेंचर एक्टिविटीज कर सकते हैं।
शाकंभरी माता मंदिर कैसे जाएँ? - How to reach Shakambhari Mata Temple?
अब हम बात करते हैं कि शाकंभरी माता के मंदिर तक कैसे जाएँ? शाकंभरी माता का मंदिर सांभर कस्बे से लगभग 25 किलोमीटर दूर है। सांभर से मंदिर तक कार या टैक्सी से जाना पड़ता है।
सांभर कस्बे की जयपुर से दूरी लगभग 70 किलोमीटर है। आप यहाँ पर ट्रेन और कार दोनों से जा सकते हैं। जयपुर से सांभर के लिए ट्रेन की अच्छी कनेक्टिविटी है।
अगर आप जयपुर से कार या टैक्सी द्वारा शाकंभरी माता के मंदिर जा रहे हैं तो आपको जोबनेर, फुलेरा, सांभर होते हुए शाकंभरी माता के मंदिर तक जाना है।
जोधपुर, नागौर, चुरू की तरफ से आने वाले लोग नावाँ होते हुए माता के मंदिर में आ सकते हैं। यह कस्बा भी सांभर झील के एक किनारे पर बसा हुआ है।
अगर आप अजमेर के चौहान राजाओं की कुलदेवी के दर्शन के साथ गुजरात के कच्छ के रण जैसी जगह को देखना चाहते हैं तो आपको इस जगह जरूर जाना चाहिए।
आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी। कमेन्ट करके अपनी राय जरूर बताएँ।
इस तरह की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।
शाकंभरी माता मंदिर की मैप लोकेशन - Map location of Shakambhari Mata Temple
शाकंभरी माता मंदिर का वीडियो - Video of Shakambhari Mata Temple
शाकंभरी माता मंदिर की फोटो - Photos of Shakambhari Mata Temple
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
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