करणी माता मंदिर का इतिहास - Karni Mata Mandir, इसमें बीकानेर के देशनोक में मौजूद करणी माता के हजारों चूहों वाले मंदिर के इतिहास की जानकारी दी गई है।
करणी माता ने चैत्र शुक्ला नवमी संवत 1595 यानी 23 मार्च 1538 में 151 साल की उम्र में अपना शरीर छोड़ दिया जिसके बाद उनकी प्रतिमा को देशनोक के उसी गुम्भारे में स्थापित किया गया जिसमें वो रहा करती थी।
इस गुम्भारे को उन्होंने खुद अपने हाथों से बनाया था। बाद में गुजरते समय के साथ इस गुम्भारे के ऊपर मंदिर बनकर उसका विकास होता गया।
इस मंदिर के निर्माण में बीकानेर के महाराजा राव जैतसी, सूरत सिंह और गंगा सिंह ने अपना योगदान दिया। राव जैतसी ने गुम्भारे के ऊपर कच्ची ईटों का मंदिर बनवाया।
सूरत सिंह ने इस कच्चे निर्माण को पक्का करवाकर मंदिर को नया रूप दिया और साथ ही मंदिर का परकोटा और मुख्य प्रवेश द्वार भी बनवाया।
महाराज गंगा सिंह के समय मंदिर के दरवाजे को संगमरमर के कलात्मक कार्य से सजाया गया। इस तरह यह मंदिर माता के रहने वाली वो जगह है जिसका विकास कई राजाओं और सेठों ने करवाया।
मंदिर में हजारों की संख्या में इतने ज्यादा चूहे रहते हैं कि इसका नाम ही चूहों वाला मंदिर पड़ गया है। इन चूहों को काबा कहा जाता है। काबा का मतलब करणी माता का बच्चा बताया जाता है यानी इन चूहों को करणी माता के बच्चे माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि ये सभी चूहे करणी माता के वंशज हैं जो कभी माता के चारण कुल में पैदा हुए थे। इन हजारों चूहों में कुछ चूहे सफेद रंग के है जिनमें से चार चूहे करणी माता के पुत्र माने जाते हैं।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
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