इस हवेली में हुआ चित्तौड़ का तीसरा जौहर! - Jaimal Patta Ki Haveli, इसमें चित्तौड़गढ़ के किले में जयमल और पत्ता की हवेली के इतिहास के बारे में जानकारी है।
चित्तौड़गढ़ के किले में जयमल और पत्ता की हवेली मौजूद है। ये वही जयमल और पत्ता है जिन्होंने अकबर की सेना से युद्ध करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था और जिनके स्मारक चित्तौड़ के दरवाजों के पास मौजूद है।
जयमल और पत्ता आपस में निकट संबंधी थे क्योंकि जयमल की बहन फूलकँवर का विवाह पत्ता से हुआ था। जब 1567-68 में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तो चित्तौड़ के दुर्ग की जिम्मेदारी जयमल के हाथों में देकर महाराणा उदय सिंह उदयपुर के पहाड़ों में चले गए थे।
1568 ईस्वी में फरवरी के महीने में चित्तौड़ का तीसरा साका हुआ। इस साके में जयमल और पत्ता के साथ लगभग 8000 राजपूत योद्धा अकबर की सेना से लड़ते हुए शहीद हुए।
इस साके में पत्ता की पत्नी फूलकँवर ने कई राजपूत महिलाओं के साथ जौहर किया। कहते हैं कि चित्तौड़ का यह तीसरा जौहर इसी हवेली में हुआ था जिसके सबूत के तौर पर आज भी आप इस हवेली की दीवारों पर कई जगह कालिख देख सकते हैं।
वैसे तो अब इस हवेली और इसके परिसर का सारा निर्माण खंडहर में बदल चुका है। चारों तरफ केवल दीवारों के अवशेष ही बचे हैं। मुख्य हवेली तीन मंजिला है जिसके ऊपरी मंजिल के तीनों तरफ काफी सुंदर गोखड़े (झरोखे) मौजूद हैं।
अब इस हवेली में कंकाली माता का मंदिर स्थापित है जिसके कारण यह हवेली एक मंदिर में बदल गई है। हवेली के सामने ही एक बड़ा सा तालाब है जिसे जयमल पत्ता का तालाब कहा जाता है।
यहाँ जाने पर जब आपको इसके इतिहास के बारे में पता चलता है तो आपकी आँखों के सामने जौहर के दृश्य घूम जाते हैं।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
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