चित्तौड़गढ़ किले के सात दरवाजे - Chittorgarh Fort Gates, इसमें चित्तौड़गढ़ किले के दरवाजों के पास घटी ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में जानकारी दी गई है।
चित्तौड़गढ़ किले को सात विशाल दरवाजों से सुरक्षित किया गया है जिन्हें पोल के नाम से जाना जाता रहा है। इन्हें नीचे से ऊपर की तरफ क्रमशः पाडन पोल, भैरों पोल, हनुमान पोल, जोडला पोल, गणेश पोल, लक्ष्मण पोल एवं राम पोल के नाम से जाना जाता है।
इन दरवाजों के पास कुछ महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएँ घटी थी, आज हम आपको उनके बारे में बताते हैं
किले के प्रथम दरवाजे पाडन पोल के बाहर चबूतरे पर देवलिया (प्रतापगढ़) के रावत बाघसिंह का स्मारक बना हुआ है। रावत बाघसिंह ने 1534-35 ईस्वी में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय किले की रक्षा करते हुए इसी स्थान पर वीरगति पाई थी। बाद में इनकी याद में यहाँ स्मारक बनाया गया।
पाडन पोल से आगे दूसरे दरवाजे को भैरव पोल कहा जाता है। इस दरवाजे का नाम देसूरी के सोलंकी सरदार भैरवदास (भैरोंदास) के नाम पर रखा गया है। 1534-35 ईस्वी में चित्तौड़ के दूसरे शाके में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के खिलाफ लड़ते हुए भैरवदास इसी जगह पर वीरगति को प्राप्त हुए थे।
भैरव पोल के पास ही राजपूत वीर जयमल और कल्ला राठौड़ की छतरियाँ बनी हुई है। ये छतरियाँ उन दो राजपूत वीरों की याद में बनी हुई है जिन्होंने 1568 ईस्वी में अकबर के आक्रमण के समय किले की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।
राम पोल से कुछ दूरी पर राजपूत वीर पत्ता सिसोदिया का स्मारक बना हुआ है। ये वही पत्ता है जिन्होंने 1567-68 ईस्वी में चित्तौड़ के तीसरे शाके में जयमल और कल्ला के साथ अकबर से युद्ध करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
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