क्या हम सस्ती जेनेरिक दवाइयाँ ले सकते हैं? - Generic Medicine in Hindi

क्या हम सस्ती जेनेरिक दवाइयाँ ले सकते हैं? - Generic Medicine in Hindi, इसमें जेनेरिक और ब्रांडेड दवाइयों की तुलना करके इनके बारे में जानकारी दी गई है।

Generic Medicine in Hindi

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क्या आप जानते हैं कि एक जेनेरिक मेडिसिन उसके समान ब्रांड नेम वाली मेडिसिन से लगभग 80 से लगभग 85 प्रतिशत कम कीमत पर बिकती है? जी हाँ, ये एकदम सत्य है।

फिर क्या कारण है कि हम इन जेनेरिक दवाइयों का उपयोग ना करके इनसे काफी महँगी ब्रांडेड दवाइयाँ use में लेते हैं?

क्या जेनेरिक दवाइयों का effect ब्रांडेड दवाइयों की तुलना में कम होता है? नहीं, ऐसा भी नहीं है। जेनेरिक दवाइयाँ quality में ब्रांडेड दवाइयों के बराबर होती है और हमारे शरीर पर इनका असर भी ब्रांडेड दवाइयों के समान ही होता है।

जब जेनेरिक दवाइयाँ सभी तरह से ब्रांडेड दवाइयों के equivalent है फिर भी इनकी availability इतनी कम क्यों है? जब महँगी दवा का substitute मौजूद है, फिर भी हम महँगी दवा क्यों खरीद रहे हैं?

इसका reason, हमारे सिस्टम और हेल्थ प्रोफेशनल्स द्वारा इनकी उपेक्षा के साथ-साथ लोगों में इनके बारे में पर्याप्त जानकारी ना होना है। अगर किसी को जानकारी है भी तो वो आधी अधूरी और भ्रमित करने वाली है।

आज हम जेनेरिक दवाइयों के सम्बन्ध में बात करके इनके सभी पहलुओं को ठीक से जानेंगे।

जेनेरिक दवाइयों की बात करते ही सबसे पहला प्रश्न यही उठता है कि जेनेरिक दवाइयाँ क्या होती हैं और जब ब्रांडेड दवाइयाँ उपलब्ध है तो इनकी जरूरत क्यों पड़ती है?

इसके जवाब में हमें सबसे पहले मेडिसिन को समझना होगा। सभी मेडिसिन्स को बनाने के लिए दो प्रकार के मटेरियल काम में लिए जाते हैं जिनमें एक मटेरियल एक्टिव और दूसरा इनएक्टिव होता है।

एक्टिव मटेरियल को एक्टिव फार्मास्यूटिकल इन्ग्रेडियेंट (Active Pharmaceutical Ingredient - API) या एक्टिव इन्ग्रेडियेंट और इनएक्टिव मटेरियल को एक्सीपियेंट (Excipient) कहते हैं।

मेडिसिन का यह एक्टिव मटेरियल ही हमारे शरीर पर इफ़ेक्ट और साइड इफ़ेक्ट पैदा करता है। इनएक्टिव मटेरियल का शरीर पर कोई असर नहीं होता ये तो बस खाली मेडिसिन के वॉल्यूम, शेप, साइज़, कलर और स्मेल को बनाये रखने के लिए काम में लिया जाता है।

यहाँ पर हमें briefly यह भी समझना होगा कि किसी भी नई दवाई के बनने की प्रक्रिया क्या है। आप सभी को ये तो पता ही है कि पूरी दुनिया में दवाइयों की manufacturing फार्मास्यूटिकल कंपनियाँ करती हैं।

ये कंपनियां नई-नई दवाइयों के लिए नए-नए एक्टिव फार्मास्यूटिकल इन्ग्रेडियेंट्स पर रिसर्च करती रहती है। रिसर्च की इस process में जानवरों और इंसानों पर कई तरह के क्लिनिकल ट्रायल्स होते हैं।

जब ये एक्टिव इन्ग्रेडियेंट्स सभी parameters पर खरे उतरते हैं तब गवर्नमेंट की मंजूरी के बाद में इनका उपयोग करके मेडिसिन के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाती है।

जिस कम्पनी ने दवा की खोज की होती है वह उस दवा पर अपने rights protect करने के लिए इसका पेटेंट करवा लेती है।

पेटेंट की अवधि में खोजकर्ता कंपनी के अलावा दूसरी कोई भी कम्पनी ना तो इस दवा को बना सकती है और ना ही बेच सकती है। generally यह पेटेंट 20 सालों के लिए दिया जाता है।

जब इस पेटेंट की अवधि समाप्त हो जाती है तब दूसरी कंपनियों के लिए भी इस दवा को उपयोग में लेकर मेडिसिन बनाने का रास्ता खुल जाता है। इस प्रकार दूसरे ब्रांड्स की मेडिसिन्स के साथ-साथ जेनेरिक मेडिसिन्स के निर्माण का रास्ता खुल जाता है।

इस प्रकार अब हम देखें तो जेनेरिक मेडिसिन्स वो दवाइयाँ होती है जिनमें generally उस एक्टिव इन्ग्रेडियेंट को काम में लिया जाता है जिसका पेटेंट समाप्त हो चुका होता है।

साथ ही इन दवाइयों का कोई ब्रांड नेम नहीं होता है और ये दवाइयाँ generally अपने एक्टिव इन्ग्रेडियेंट के नाम से ही बिकती है।

इसे हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं। आप सब ने बुखार के काम में आने वाली दवा क्रोसिन का नाम तो सुना ही होगा। अगर इस दवा के एक्टिव इन्ग्रेडियेंट की बात करें तो वह पेरासिटामोल है।

यहाँ पर क्रोसिन एक ब्रांड नेम है जिसका यह नाम क्रोसिन बनाने वाली कंपनी ने रखा है। इस प्रकार पेरासिटामोल नाम के एक्टिव इन्ग्रेडियेंट से जितनी भी कंपनियाँ बुखार की दवा बनाती है वे अपने अलग-अलग ब्रांड नेम रखती हैं।

लेकिन अगर जेनेरिक मेडिसिन की बात करें तो ये ब्रांड नेम के रूप में नहीं बिकती है। सभी कंपनियों की जेनेरिक मेडिसिन उसके एक्टिव इन्ग्रेडियेंट के नाम से ही बिकती है।

अगर हम बुखार की दवा पेरासिटामोल की बात करें तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया में जितनी भी कंपनियाँ पेरासिटामोल से जेनेरिक मेडिसिन बनाती हैं वे इसका नाम पेरासिटामोल के अलावा और कुछ नहीं रख सकती हैं।

summary यह है कि एक एक्टिव इन्ग्रेडियेंट से सौ ब्रांड नेम वाली मेडिसिन बनाकर बेची जा सकती है लेकिन इससे बनने वाली जेनेरिक मेडिसिन का नाम सिर्फ एक ही होगा और वह पूरी दुनिया में समान होगा।


जेनेरिक मेडिसिन को समझने के बाद, दूसरा प्रश्न ये उठता है कि इनमें और ब्रांडेड मेडिसिन्स में क्या फर्क है?

इसके उत्तर में मैं यही कहना चाहूँगा कि बहुत फर्क है। सबसे बड़ा फर्क तो यह है कि कोई भी जेनेरिक दवाई उसके समान ब्रांडेड दवाई के मुकाबले लगभग 80-90 प्रतिशत से भी अधिक सस्ती हो सकती है।

दूसरा फर्क इनकी अपीयरेंस में हो सकता है जैसे इनकी बनावट, कलर, स्मेल, साइज़ अलग-अलग हो सकते हैं। ये फर्क इसलिए होता है कि जितनी भी कम्पनियाँ इन्हें बनाती हैं वे मेडिसिन के इनएक्टिव पार्ट को अपने हिसाब से तय कर सकती हैं।

लेकिन अगर जेनेरिक मेडिसिन्स के इफ़ेक्ट (Effect) और स्ट्रेंग्थ (Strength) यानि पोटेंसी (Potency) की अगर बात की जाए तो उसमें कोई फर्क नहीं होता है।

इफ़ेक्ट ही क्या इनके साइड इफ़ेक्ट (Side Effect), डोज (Dose), डोजेज फॉर्म (Dosage Form), इन्हें लेने का तरीका यानी रूट ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन (Route of Administration), क्वालिटी (Quality) आदि सभी कुछ ब्रांडेड मेडिसिन के बराबर ही प्रभावकारी होते हैं।

अब यहाँ पर यह प्रश्न उठता है कि जब इफ़ेक्ट और स्ट्रेंग्थ दोनों बराबर है तो फिर इनकी कीमत इतनी कम क्यों होती है?

इसके दो कारण है जिनमें पहला यह है कि किसी भी पेटेंट प्राप्त एक्टिव इन्ग्रेडियेंट पर उसकी खोजकर्ता कंपनी की मोनोपोली तब तक होती है जब तक पेटेंट की अवधि समाप्त नहीं हो जाती है।

इस पेटेंट की अवधि में अन्य कम्पनियाँ इस एक्टिव इन्ग्रेडियेंट को काम में लेकर मेडिसिन नहीं बना सकती है जिसके कारण मूल कम्पनी के सामने किसी भी तरह का कोई कम्पटीशन नहीं होता है।

जब कम्पटीशन ना हो तब मेडिसिन के मनचाहे दाम वसूल किये जा सकते हैं। इन दामों को रिसर्च और मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट के नाम पर जस्टिफाई भी कर लिया जाता है।

पेटेंट की अवधि समाप्त होने के बाद में जब दूसरी कई कम्पनियाँ उस एक्टिव इन्ग्रेडियेंट से दवा बनाने लग जाती है तो कम्पटीशन की वजह से कीमत कम हो जाती है।

दूसरा कारण यह है कि जेनेरिक दवाओं की नए सिरे से ना तो रिसर्च होती है और ना ही कोई ब्रांड होता है। इस वजह से रिसर्च का पैसा का पैसा बच जाता है।

साथ ही कोई ब्रांड ना होने की वजह से इनकी मार्केटिंग कास्ट भी पूरी तरह से बच जाती है। इन्हीं दोनों कारणों से जेनेरिक मेडिसिन्स की कीमत उनके समान ब्रांडेड मेडिसिन्स की कीमत से काफी कम होती है?

अब सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि जब जेनेरिक और ब्रांडेड मेडिसिन्स में किसी तरह का कोई फर्क नहीं है तो फिर पेशेंट्स को सस्ती जेनेरिक मेडिसिन्स की जगह महँगी ब्रांडेड मेडिसिन्स क्यों दी जा रही है?

इसका उत्तर आप बड़ी आसानी से समझ सकते हैं। गवर्नमेंट ने कई बार सरकारी हॉस्पिटल्स के डॉक्टर्स के लिए गाइडलाइन्स जारी की हुई है कि उन्हें मरीज को दी जाने वाली दवा की पर्ची पर मेडिसिन्स का जेनेरिक नाम ही लिखना है।

लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद में भी इस आदेश की पालना नहीं हो पा रही है। अब क्यों नहीं हो पा रही है ये आप खुद सोचिये और समझिये क्योंकि इस विषय पर बात करने का मतलब मूल विषय से भटकना है।

भारत सरकार अपने स्तर पर जेनेरिक दवाइयाँ पेशेंट्स को उपलब्ध करवाने के लिए जगह-जगह जन औषधि केंद्र खोल रही है। इन जन औषधि केन्द्रों पर सस्ती कीमत पर जेनेरिक मेडिसिन्स मिलती है।

आप जन औषधि सुगम एप (Jan Aushadhi Sugam app) डाउनलोड करके जन औषधि केंद्र और इन पर उपलब्ध दवाइयों से सम्बंधित सभी तरह की जानकारी ले सकते हैं।

अब यह आपको तय करना है कि आपको महँगी ब्रांडेड दवाइयाँ खरीदनी है या सस्ती जेनेरिक दवाइयाँ।

लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

अस्वीकरण (Disclaimer)

आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं, इसमें दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई हो सकती है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है, इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। आलेख में दी गई स्वास्थ्य सम्बन्धी सलाह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मैं एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट हूँ। मेरी क्वालिफिकेशन M Pharm (Pharmaceutics), MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA और CHMS है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें। जैसा कि मैंने आपको बताया कि मैं एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट भी हूँ इसलिए मैं लोगों को वीडियो और ब्लॉग के माध्यम से स्वास्थ्य संबंधी उपयोगी जानकारियाँ भी देता रहता हूँ। आप ShriMadhopur.com ब्लॉग से जुड़कर ट्रैवल और हेल्थ से संबंधित मेरे लेख पढ़ सकते हैं।

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