दवा खाने का सही तरीका क्या है? - Correct way to take medicine in Hindi

दवा खाने का सही तरीका क्या है? - Correct way to take medicine in Hindi, इसमें दवाओं के काम करने की प्रक्रिया के साथ इन्हें लेने का सही तरीका बताया है।

Correct way to take medicine in Hindi

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इंसान का बीमारियों और दवाइयों से रोजमर्रा का वास्ता पड़ने लग गया है। जैसे-जैसे विज्ञान प्रगति करता जा रहा है वैसे-वैसे नई-नई दवाओं की खोज होती जा रही है।

आज के समय में एलोपैथिक दवाओं का सबसे अधिक बोलबाला है। एलोपैथिक दवाओं के अधिक प्रयोग में लिए जाने का सबसे बड़ा कारण है कि ये दवाइयाँ तुरंत या कुछ समय में ही आराम दे देती हैं।

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में या तो लोगों के पास बीमारी में भी आराम करने का समय नहीं है या फिर कोई भी आदमी बिस्तर पर थोड़ा सा भी वक्त नहीं बिताना चाहता है।

हमें यह भली भाँति समझना होगा कि लगभग सभी एलोपैथिक दवाइयाँ केमिकल्स से निर्मित होती है इसलिए इनके जितने फायदे होते हैं, उससे कहीं अधिक नुकसान भी होते हैं।

सबसे पहले हमें एलोपैथिक दवाइयाँ कैसे काम करती है इसे थोड़ा बहुत समझना होगा।

इंसान के शरीर में सभी खाने वाली दवाओं का लगभग एक ही पैटर्न होता है। कोई भी दवा सबसे पहले हमारे पेट या आँतों के अन्दर जाकर वहाँ खून में अब्सोर्ब होती है।

इसके बाद यह खून के माध्यम से हमारे लीवर में जाती है। लीवर में इस दवा के साथ केमिकल रिएक्शन होती है जिसे मेटाबोलिज्म कहा जाता है। इसके बाद यह दवा खून के द्वारा सम्पूर्ण शरीर में डिस्ट्रीब्यूट होती है।

चूँकि, रक्त का प्रवाह शरीर के सभी अंगों तथा सभी हिस्सों में होता है, इसलिए यह दवा शरीर के हर अंग और हर हिस्से पर अपना प्रभाव दिखाते हुए अंत में किडनी द्वारा एक्स्क्रेट हो जाती है।

जैसा कि हम समझ गए हैं कि लगभग सभी दवाएँ शरीर के सभी अंगों पर अपना प्रभाव डालती है, चाहे हमें उन अंगों पर उन प्रभावों की आवश्यकता हो या ना हो।

अब जिन अंगों में दवा के प्रभाव की जरूरत होती है वहाँ वह लाभदायक बन जाता है और जिन अंगों पर जरूरत नहीं होती है वहाँ वह हानिकारक बन जाता है।

अभी तक यह तकनीक नहीं आई है कि दवाओं के प्रभाव को सिर्फ उन अंगों तक ही सीमित रखा जाये जहाँ पर इनकी जरूरत हो।

एलोपैथिक दवा को प्रयोग में लेते समय हमें यह जरूर ध्यान में रखना होगा कि लीवर और किडनी दोनों ही एलोपैथिक दवाओं द्वारा सबसे अधिक प्रभावित होते हैं क्योंकि लीवर दवाओं के मेटाबोलिज्म तथा किडनी इनके एक्स्क्रेशन में काम आती है।

एलोपैथिक दवाओं के अधिक सेवन से लीवर और किडनी की बीमारियाँ अधिक होती हैं इसलिए जब तक बहुत जरूरी ना हो एलोपैथिक दवाओं के सेवन से बचें।

एलोपैथिक दवाओं में एक्सपायरी डेट बहुत महत्वपूर्ण होती है इसलिए सबसे पहले हमें इनकी एक्सपायरी डेट जरूर जाँचनी चाहिए। एक्सपायर्ड दवाओं को घर में न रखकर फेंक देना चाहिए।


एक्सपायर्ड दवाओं की गुणवत्ता व प्रभाव दोनों समाप्त हो जाते हैं और ये हमारे शरीर पर कई तरह के दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) भी डाल सकती हैं।

कोई भी बीमारी, दवा की एक्यूरेट डोज यानी सही मात्रा से ही सही हो पायेगी। अगर डोज कम होगी तो वह असर नहीं करेगी और अगर डोज ज्यादा होगी तो वह अधिक साइड इफ़ेक्ट पैदा करेगी।

ओवरडोज़, कई बार अत्यंत घातक हो सकती है इसलिए दवा को निर्धारित मात्रा में लेना अत्यंत आवश्यक है। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि बच्चों, वयस्कों और बुजुर्गों के लिए दवा की मात्रा अलग होती है।

दवा की मात्रा का निर्धारण कई कारकों पर निर्भर करता है। अतः दवा कौन ले रहा है यह भी काफी महत्वपूर्ण होता है। कई बार महिलाओं और पुरुषों के लिए भी दवा की मात्रा में अंतर हो सकता है।

दवाओं का स्टोरेज काफी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि अधिक तापमान पर बहुत सी दवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है और वे खराब भी हो सकती है।

अलग-अलग दवाओं का भण्डारण अलग-अलग तापमान पर होता है जैसे किसी को कूल प्लेस पर तथा किसी को कोल्ड प्लेस पर रखा जाता है।

कुछ ऐसी दवाएँ भी होती है जिनके लिए फ्रिज की भी आवश्यकता पड़ती है। अतः हमें विभिन्न स्टोरेज टेम्परेचर्स के बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए।

कमरे का तापमान (रूम टेम्परेचर) का मतलब पच्चीस डिग्री सेल्सियस के आसपास का तापमान, कूल प्लेस का मतलब ऐसा स्थान जिसका तापमान आठ से पच्चीस डिग्री सेल्सियस के बीच हो, कोल्ड प्लेस का मतलब ऐसा स्थान जिसका तापमान दो से लेकर आठ डिग्री सेल्सियस के बीच हो।

बहुत से इंजेक्शन, ब्लड प्रोडक्ट्स, सपोजिट्री, आदि को सिर्फ और सिर्फ फ्रिज में ही रखना चाहिए अन्यथा ये खराब हो जाते हैं।

अधिकतर दवाएँ जैसे टेबलेट, कैप्सूल और सिरप, आदि को कमरे के तापमान पर ऐसी जगह रखना चाहिए जहाँ वातावरण में नमीं न हो और उन पर सूर्य की किरणें सीधी न पड़ती हो। नमी और सूर्य की गर्मी में दवाएँ खराब हो जाती है।

टेबलेट और कैप्सूल के रूप में उपलब्ध दवा को खाने के पश्चात इतना पानी अवश्य पीना चाहिए ताकि वह पूरी तरह से पेट में चली जाए। सामान्यतः, दवा को सिर्फ पानी के साथ ही लेना चाहिए अन्य किसी भी पेय पदार्थ के साथ नहीं।

कई लोग अपनी मर्जी से ही दवा को दूध या फिर चाय के साथ ले लेते हैं जो गलत है क्योंकि बहुत सी दवाओं का असर दूध के साथ कम हो जाता है।

टेबलेट के टुकड़े करके भी कभी नहीं खाना चाहिए क्योंकि बहुत सी टेबलेट्स पर केमिकल की पतली परत जिसे एंटरिक कोटिंग कहते हैं, वह चढ़ाई जाती है ताकि उस टेबलेट को पेट के अम्ल से बचाया जा सके तथा वह पेट में न घुलकर आँतों में घुले।

इस प्रकार की दवाएँ आँतों में पहुँचकर ही अपना प्रभाव दिखा पाती है और अगर ये पेट में ही घुल जाएँगी तो पेट का अम्ल इन्हें प्रभावहीन बना देता है।

अधिकतर दवाएँ भोजन करने के पश्चात लेनी चाहिए ताकि उनका असर अधिक वक्त तक रहने के साथ-साथ पेट में इर्रिटेशन भी कम से कम हो, जैसे दर्द और बुखार की दवाएँ हमेशा खाना खाने के पश्चात ही लेनी चाहिए वरना पेट में अल्सर होने की संभावना अधिक हो जाती है।

कुछ दवाएँ जैसे एसिडिटी को रोकने वाली अधिकतर दवाएँ, खाली पेट यानी बिना कुछ खाए या खाना खाने से कुछ समय पूर्व लेने की होती है। अधिकांशतः ये सुबह के समय बिना कुछ खाए ली जाती हैं।

कुछ दवाएँ जैसे नींद लाने वाली दवाएँ या एलर्जी के काम आने वाली दवाएँ, रात के समय ली जाती है। अतः दवा खाने के समय के मामले में भी चिकित्सक के निर्देशों का पालन करें।

दवा लेने का समय अंतराल भी निश्चित होता है जैसे कुछ दवाएँ दिन में एक बार, कुछ दिन में दो बार तथा कुछ दिन में तीन या चार बार लेने की होती है।

हमें ध्यान रखना चाहिए कि दिन में एक बार का मतलब हर चौबीस घंटे के अंतराल पर, दिन में दो बार का मतलब हर बारह घंटे के अंतराल पर, दिन में तीन बार का मतलब हर आठ घंटे के अंतराल पर और चार बार का मतलब हर छः घंटे के अंतराल पर होता है।

बहुत से लोग दिन में दो बार का मतलब सुबह, शाम और तीन बार का मतलब सुबह, दोपहर और शाम से समझते हैं जो कि पूर्णतया गलत है।

गर्भवती महिलाओं को सभी दवाएँ बिना परामर्श के नहीं लेनी चाहिए अन्यथा गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

इस प्रकार हमें दवा लेते समय इन सभी सामान्य बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए ताकि हम दवाओं के साइड इफ़ेक्ट से बचकर जल्दी से जल्दी स्वस्थ हो सकें।

दवा खाने के सही तरीके का वीडियो - Video of Correct way to take medicine in Hindi



लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

अस्वीकरण (Disclaimer)

आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं, इसमें दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई हो सकती है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है, इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। आलेख में दी गई स्वास्थ्य सम्बन्धी सलाह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मैं एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट हूँ। मेरी क्वालिफिकेशन M Pharm (Pharmaceutics), MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA और CHMS है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें। जैसा कि मैंने आपको बताया कि मैं एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट भी हूँ इसलिए मैं लोगों को वीडियो और ब्लॉग के माध्यम से स्वास्थ्य संबंधी उपयोगी जानकारियाँ भी देता रहता हूँ। आप ShriMadhopur.com ब्लॉग से जुड़कर ट्रैवल और हेल्थ से संबंधित मेरे लेख पढ़ सकते हैं।

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