हिंदी कविताएँ भाग 3 - Hindi Poems Part 3, इसमें हिन्दी भाषा की कविताएँ सम्मिलित की गई हैं जिसमें अलग अलग मूड की कुल दस कविताएँ शामिल की गई हैं।
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1. जवानी का गुरूर हिंदी कविता
जब बचपन बीते और किशोरावस्था जाने लगेजब मन नए नए अरमान सजाने लगेजब सपने मन मोहक और सुहाने लगेजब रात और दिन अपना फर्क भुलाने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब पढाई के अलावा भी दुनिया है, ये बात दोस्त समझाने लगेजब माता-पिता की बातें बेमानी सी लगने लगेजब दिमाग को बंधक बनाकर दिल का शासन चलने लगेजब हर कृत्य को दिल के बेतुके तर्क ढ़कने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब मित्र मंडली में नए इरादों के साथ साथ नए सपने पलने लगेजब कोई सही राह दिखाने की कोशिश करें तो वो खलने लगेजब बातों बातों में ही दिल बार बार जलने लगेजब दूसरों को देखकर हाथ मलने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब दिल में इरादे चट्टान की तरह मजबूत होने लगेजब मंजिल की तरफ कदम बढे और रुकने लगेजब गिर गिरकर हर हाल में आगे बढने लगेजब किसी के सपने हमारी आँखों में पलने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब खुद का साया खुद से ही बातें करने लगेजब खुद के साये में किसी ओर की छवि नजर आने लगेजब खुद का साया अक्स बनकर सताने लगेजब अपने साये से दूर भाग जाने का मन करेंयही जवानी का गुरूर है।
जब मन में लहरों की माफिक उमंगें उठने लगेजब दिल जो कहे वही करने का मन करने लगेजब साँसों को महकाने वाली खुशबु का अहसास होने लगेजब सारी कायनात अपनी सी लगने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब मन में नए नए अरमान पलने लगेजब किसी की देखकर धडकनें बहुत तेज चलने लगेजब किसी को छुप छुप कर निहारने का मन करने लगेजब किसी को हर सुख देने और उसके हर गम को लेने का मन करने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब सारी दुनिया दुश्मन सी लगने लगेजब दुनिया से बगावत करने का दिल करने लगेजब किसी पर जान न्योछावर करने का इरादा होने लगेजब किसी के लिए सारी दुनिया से टकराने का दिल करने लगेयही जवानी का गुरूर है।
जब गुरूर उतरने लगता है तब सच्चाई सामने आती हैजब सुरूर का धुआँ हटने लगता है तब दिल को दहलाती हैजब दिमाग को पुनः सत्ता मिलती है तब दिल धक से रह जाता हैजो लुट चुका होता है उसकी भरपाई दिल कभी भी नहीं कर पाता हैदोस्तों जवानी को जिओ परन्तु इसके गुरूर को मगरूर मत होने दोअपनी मंजिलों को हासिल करने के दृढ़ इरादों को कभी मत खोने दोयही जवानी का गुरूर है।
जब बचपन बीते और किशोरावस्था जाने लगे
जब मन नए नए अरमान सजाने लगे
जब सपने मन मोहक और सुहाने लगे
जब रात और दिन अपना फर्क भुलाने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब पढाई के अलावा भी दुनिया है, ये बात दोस्त समझाने लगे
जब माता-पिता की बातें बेमानी सी लगने लगे
जब दिमाग को बंधक बनाकर दिल का शासन चलने लगे
जब हर कृत्य को दिल के बेतुके तर्क ढ़कने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब मित्र मंडली में नए इरादों के साथ साथ नए सपने पलने लगे
जब कोई सही राह दिखाने की कोशिश करें तो वो खलने लगे
जब बातों बातों में ही दिल बार बार जलने लगे
जब दूसरों को देखकर हाथ मलने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब दिल में इरादे चट्टान की तरह मजबूत होने लगे
जब मंजिल की तरफ कदम बढे और रुकने लगे
जब गिर गिरकर हर हाल में आगे बढने लगे
जब किसी के सपने हमारी आँखों में पलने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब खुद का साया खुद से ही बातें करने लगे
जब खुद के साये में किसी ओर की छवि नजर आने लगे
जब खुद का साया अक्स बनकर सताने लगे
जब अपने साये से दूर भाग जाने का मन करें
यही जवानी का गुरूर है।
जब मन में लहरों की माफिक उमंगें उठने लगे
जब दिल जो कहे वही करने का मन करने लगे
जब साँसों को महकाने वाली खुशबु का अहसास होने लगे
जब सारी कायनात अपनी सी लगने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब मन में नए नए अरमान पलने लगे
जब किसी की देखकर धडकनें बहुत तेज चलने लगे
जब किसी को छुप छुप कर निहारने का मन करने लगे
जब किसी को हर सुख देने और उसके हर गम को लेने का मन करने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब सारी दुनिया दुश्मन सी लगने लगे
जब दुनिया से बगावत करने का दिल करने लगे
जब किसी पर जान न्योछावर करने का इरादा होने लगे
जब किसी के लिए सारी दुनिया से टकराने का दिल करने लगे
यही जवानी का गुरूर है।
जब गुरूर उतरने लगता है तब सच्चाई सामने आती है
जब सुरूर का धुआँ हटने लगता है तब दिल को दहलाती है
जब दिमाग को पुनः सत्ता मिलती है तब दिल धक से रह जाता है
जो लुट चुका होता है उसकी भरपाई दिल कभी भी नहीं कर पाता है
दोस्तों जवानी को जिओ परन्तु इसके गुरूर को मगरूर मत होने दो
अपनी मंजिलों को हासिल करने के दृढ़ इरादों को कभी मत खोने दो
यही जवानी का गुरूर है।
2. शायद यही बुढ़ापा है हिंदी कविता
जब यौवन ढल ढल जाता हैजब यौवन पतझड़ बन जाता हैजब स्वास्थ्य कहीं खोने लगता हैजब शरीर क्षीण होने लगता हैशायद यही बुढ़ापा है।
जब सत्ता छिनती जाती हैजब सुना अनसुना होने लगता हैजब कोई पास नहीं रुकता हैजब खून के रिश्ते रोते हैंशायद यही बुढ़ापा है।
जब कुछ कर नहीं पाते हैंजब मन मसोसकर रह जाते हैंजब बीते दिन बिसराते हैंजब वक्त और परिस्थितियाँ बदल न पाते हैंशायद यही बुढ़ापा है।
जब मन में ज्वार-भाटे उठते हैंजब हर मौसम पतझड़ लगता हैजब पुराने दरख्तों से खुद की तुलना होती हैजब मन सदैव विचलित सा रहता हैशायद यही बुढ़ापा है।
जब दैहिक आकर्षण कम होने लगता हैजब आत्मिक प्रेम बढ़ने लगता हैजब समय रुपी दर्पण नए चेहरे दिखाता हैजब कर्मों का फल याद आता हैशायद यही बुढ़ापा है।
जब हर वक्त अकेलापन रुलाता हैजब वक्त काटना दूभर हो जाता हैजब हर पल दिल घबराता हैजब यादों का भंवर कचोटता हैशायद यही बुढ़ापा है।
जब रक्त के सम्बन्ध रंग दिखाते हैंजब अपनो में उपेक्षा पाते हैंजब बोझ समझ लिया जाता हैजब अहसान और उपकार गिनाये जाते हैंशायद यही बुढ़ापा है।
इस उम्र में बस एक ये रिश्ता जो सब रिश्तों में अनोखा हैयह रक्त का नहीं, जिस्मों का नहीं, सिर्फ आत्माओं का रिश्ता हैयह रिश्ता उम्र के साथ गहरा ओर गहरा होता जाता हैयह निस्वार्थ प्रेम के साथ मृत्यु पर्यन्त निभाया जाता हैयह पति पत्नी का रिश्ता होता है जो सुख दुःख का सच्चा साथी होता हैशायद यही बुढ़ापा है।
ये भी पढ़ें हिंदी कविताएँ भाग 1 - Hindi Poems Part 1
जब यौवन ढल ढल जाता है
जब यौवन पतझड़ बन जाता है
जब स्वास्थ्य कहीं खोने लगता है
जब शरीर क्षीण होने लगता है
शायद यही बुढ़ापा है।
जब सत्ता छिनती जाती है
जब सुना अनसुना होने लगता है
जब कोई पास नहीं रुकता है
जब खून के रिश्ते रोते हैं
शायद यही बुढ़ापा है।
जब कुछ कर नहीं पाते हैं
जब मन मसोसकर रह जाते हैं
जब बीते दिन बिसराते हैं
जब वक्त और परिस्थितियाँ बदल न पाते हैं
शायद यही बुढ़ापा है।
जब मन में ज्वार-भाटे उठते हैं
जब हर मौसम पतझड़ लगता है
जब पुराने दरख्तों से खुद की तुलना होती है
जब मन सदैव विचलित सा रहता है
शायद यही बुढ़ापा है।
जब दैहिक आकर्षण कम होने लगता है
जब आत्मिक प्रेम बढ़ने लगता है
जब समय रुपी दर्पण नए चेहरे दिखाता है
जब कर्मों का फल याद आता है
शायद यही बुढ़ापा है।
जब हर वक्त अकेलापन रुलाता है
जब वक्त काटना दूभर हो जाता है
जब हर पल दिल घबराता है
जब यादों का भंवर कचोटता है
शायद यही बुढ़ापा है।
जब रक्त के सम्बन्ध रंग दिखाते हैं
जब अपनो में उपेक्षा पाते हैं
जब बोझ समझ लिया जाता है
जब अहसान और उपकार गिनाये जाते हैं
शायद यही बुढ़ापा है।
इस उम्र में बस एक ये रिश्ता जो सब रिश्तों में अनोखा है
यह रक्त का नहीं, जिस्मों का नहीं, सिर्फ आत्माओं का रिश्ता है
यह रिश्ता उम्र के साथ गहरा ओर गहरा होता जाता है
यह निस्वार्थ प्रेम के साथ मृत्यु पर्यन्त निभाया जाता है
यह पति पत्नी का रिश्ता होता है जो सुख दुःख का सच्चा साथी होता है
शायद यही बुढ़ापा है।
3. मैं लड़की हूँ मेरा कसूर क्या है हिंदी कविता
इस घर में आसमान से एक नई नवेली बिटिया आ गईदेखते ही देखते बहुत से चेहरों पर उदासी छा गईमाहौल कुछ ऐसा बना कि जैसे कोई बड़ा अपशकुन हुआऐसा लगता है कि शायद दागदार एक माँ का आँचल हुआकई लोगों की सूरत तो ऐसी रोनी सी हुईजैसे इस घर में कोई बड़ी अनहोनी हुईकिसी ने चुटकी ली कि मिठाई बाँटो घर में नया मेहमान आया हैकोई बोला कि ये तो पराया धन है और सब ऊपर वाले की माया हैकोई नवजात के पिता की तरफ देख कर सहानुभूति पूर्वक बोलाबेचारे को भगवान ने बेटी देकर बहुत जिम्मेदारियों से तोलानवजात की अधखुली आँखें शायद पूछ रही हैमैं लड़की हूँ इसमें मेरा कसूर क्या है?
बड़े होते होते वक्त बहुत अलग अलग रंग दिखला रहा हैमुझे बंधनों और सीमाओं में रहना है ये सिखला रहा हैऐसा लगने लगा कि जैसे घर की दीवारें भी ये बतला रही हैतू एक लड़की है सिर्फ लड़की, तू इतना क्यों इठला रही हैतुझे नहीं है डालनी कोई आदत इठलाने कीयही बेदर्द रिवाज है इस जालिम जमाने कीतुझे जीना है इस दुनिया में सिर्फ औरों के लिएरहना है हमेशा खुशनुमा एक धधकता दिल लिएन तेरी कोई इच्छाएँ न कोई ख्वाब और ख्वाहिशें होगीतेरी चाहतें और इच्छाएँ सिर्फ गुजारिशें होंगीअगर तू तुलना करेगी इस जीवन की अपने भाइयों सेजो उन्मुक्त और स्वच्छंद जीवन जीते हैअगर कभी शिकायत करें उनकी तरह जीने कीतो कहा जायेगा कि वो लड़के है और लड़के ऐसे ही रहते हैविस्मित आँखों में अनगिनत प्रश्न यही पूछ रहे हैंमैं लड़की हूँ इसमें मेरा कसूर क्या है?
जब-जब मैं पढ़ना चाहूँसभी चाहे कि में घरेलू कामों में हाथ बटाकरकामकाज चौका बर्तन अच्छी तरह सीख लूँपढ़ने से अधिक जरूरी मेरा गृह कार्य में पारंगत होना हैआखिर में तो पराया धन हूँ और मुझे अपने घर जाना हैमुझे पाला ही जाता है किसी अजनबी को सौंपने के लिएमेरे अपने ही तैयार होते हैं मेरे सपनों में छुरा घोंपने के लिएमें अपनी मर्जी से न बाहर जा सकती हूँ न पढ़ सकती हूँविवाह तो बहुत दूर की बात है न प्रेम कर सकती हूँबिना सहारे इधर से उधर निकल नहीं सकतीअधिकतर चारदीवारी में है मेरी दुनिया सिमटतीबेबसी से भरी व्याकुल आँखें पूछती हैमैं लड़की हूँ इसमें मेरा कसूर क्या है?
विवाह के पश्चात जब काफिला ससुराल में आ गयादुल्हन अपने साथ क्या क्या लायी है यही प्रश्न चहुँओर छा गयाहर तरफ दायजे को देखने और उसकी मीमांसा करने का जुनून थाहर कोई दूसरे के दायजे से तुलना करने में पूरी तरह मशगूल थाबचपन से ही मुझे यही बताया गया था कि मुझे अपने घर जाना हैअब मुझे जोर शोर से इस घर में अपने घर को तलाश करना हैजैसे पिता के घर में जीना होता था मुझे औरों के लिएउसी की पुनरावृत्ति मुझे ससुराल में करनी सभी के लिएससुराल में हर एक व्यक्ति की जी भर के सेवा करना हैउनका दिल जीत कर सत्कर्मों से जीवन को भरना हैऔरत पैदा होने से लेकर मृत्यु पर्यन्त इतनी पराधीन क्यों हैहर कार्य के लिए किसी न किसी पुरुष के अधीन क्यों हैएक बहु के घायल जज्बातों से भरी आँखें यही पूँछ रही हैमैं लड़की हूँ इसमें मेरा कसूर क्या है?
इस घर में आसमान से एक नई नवेली बिटिया आ गई
देखते ही देखते बहुत से चेहरों पर उदासी छा गई
माहौल कुछ ऐसा बना कि जैसे कोई बड़ा अपशकुन हुआ
ऐसा लगता है कि शायद दागदार एक माँ का आँचल हुआ
कई लोगों की सूरत तो ऐसी रोनी सी हुई
जैसे इस घर में कोई बड़ी अनहोनी हुई
किसी ने चुटकी ली कि मिठाई बाँटो घर में नया मेहमान आया है
कोई बोला कि ये तो पराया धन है और सब ऊपर वाले की माया है
कोई नवजात के पिता की तरफ देख कर सहानुभूति पूर्वक बोला
बेचारे को भगवान ने बेटी देकर बहुत जिम्मेदारियों से तोला
नवजात की अधखुली आँखें शायद पूछ रही है
मैं लड़की हूँ इसमें मेरा कसूर क्या है?
बड़े होते होते वक्त बहुत अलग अलग रंग दिखला रहा है
मुझे बंधनों और सीमाओं में रहना है ये सिखला रहा है
ऐसा लगने लगा कि जैसे घर की दीवारें भी ये बतला रही है
तू एक लड़की है सिर्फ लड़की, तू इतना क्यों इठला रही है
तुझे नहीं है डालनी कोई आदत इठलाने की
यही बेदर्द रिवाज है इस जालिम जमाने की
तुझे जीना है इस दुनिया में सिर्फ औरों के लिए
रहना है हमेशा खुशनुमा एक धधकता दिल लिए
न तेरी कोई इच्छाएँ न कोई ख्वाब और ख्वाहिशें होगी
तेरी चाहतें और इच्छाएँ सिर्फ गुजारिशें होंगी
अगर तू तुलना करेगी इस जीवन की अपने भाइयों से
जो उन्मुक्त और स्वच्छंद जीवन जीते है
अगर कभी शिकायत करें उनकी तरह जीने की
तो कहा जायेगा कि वो लड़के है और लड़के ऐसे ही रहते है
विस्मित आँखों में अनगिनत प्रश्न यही पूछ रहे हैं
मैं लड़की हूँ इसमें मेरा कसूर क्या है?
जब-जब मैं पढ़ना चाहूँ
सभी चाहे कि में घरेलू कामों में हाथ बटाकर
कामकाज चौका बर्तन अच्छी तरह सीख लूँ
पढ़ने से अधिक जरूरी मेरा गृह कार्य में पारंगत होना है
आखिर में तो पराया धन हूँ और मुझे अपने घर जाना है
मुझे पाला ही जाता है किसी अजनबी को सौंपने के लिए
मेरे अपने ही तैयार होते हैं मेरे सपनों में छुरा घोंपने के लिए
में अपनी मर्जी से न बाहर जा सकती हूँ न पढ़ सकती हूँ
विवाह तो बहुत दूर की बात है न प्रेम कर सकती हूँ
बिना सहारे इधर से उधर निकल नहीं सकती
अधिकतर चारदीवारी में है मेरी दुनिया सिमटती
बेबसी से भरी व्याकुल आँखें पूछती है
मैं लड़की हूँ इसमें मेरा कसूर क्या है?
विवाह के पश्चात जब काफिला ससुराल में आ गया
दुल्हन अपने साथ क्या क्या लायी है यही प्रश्न चहुँओर छा गया
हर तरफ दायजे को देखने और उसकी मीमांसा करने का जुनून था
हर कोई दूसरे के दायजे से तुलना करने में पूरी तरह मशगूल था
बचपन से ही मुझे यही बताया गया था कि मुझे अपने घर जाना है
अब मुझे जोर शोर से इस घर में अपने घर को तलाश करना है
जैसे पिता के घर में जीना होता था मुझे औरों के लिए
उसी की पुनरावृत्ति मुझे ससुराल में करनी सभी के लिए
ससुराल में हर एक व्यक्ति की जी भर के सेवा करना है
उनका दिल जीत कर सत्कर्मों से जीवन को भरना है
औरत पैदा होने से लेकर मृत्यु पर्यन्त इतनी पराधीन क्यों है
हर कार्य के लिए किसी न किसी पुरुष के अधीन क्यों है
एक बहु के घायल जज्बातों से भरी आँखें यही पूँछ रही है
मैं लड़की हूँ इसमें मेरा कसूर क्या है?
4. मैं और मेरे कॉलेज के दोस्त हिंदी कविता
कॉलेज के दिनों में मिले मुझे कई अनजाने अपनेसब नें साथ में मिल जुल कर देखे थे सुनहरे सपनेकॉलेज का वक्त बीता और सब का साथ छूट गयाधीरे धीरे सबका आपस में संपर्क और नाता टूट गया
गुजरते वक्त के साथ सब प्रोफेशनल होते गएचौबीसों घंटे सब अपने प्रोफेशन में खोते गएभूलने लगे उन दिनों को जो अब कभी न लौट पाएँगेउम्र के एक दौर में पुरानी यादें बनकर तड़पाएँगे
धीरे धीरे मेरे साथ मेरे सभी दोस्त पकने लगे हैंअपने सफेद और उड़ते बालों को ढकने लगे हैंऐसा नहीं है कि पहले किसी वजह से जागते थे रातों मेंलेकिन अब रातों में बेवजह जगने लगे हैं
उम्र ऐसी आ गई कि ना बुढ़ापा है और ना जवानी हैशरीर थकने लगा है लेकिन मन में अभी भी रवानी हैपापा, चाचा, ताऊ का किरदार निभाने लग गए है मगर'दिल तो बच्चा है जी' गाते हुए अभी भी हसरतें पुरानी है
कभी जब तन्हा होते हैं तो याद कर लेते हैं पुराने दिनदेखते देखते फुर्र से कहाँ उड़ गए वो सुनहरे पल छिनकभी कभी मन करता है कि उस दौर में फिर से लौट जाऊँसबके गले लगूँ, कुछ उनकी सुनूँ, कुछ अपनी सुनाऊँ
कॉलेज के दिनों में मिले मुझे कई अनजाने अपने
सब नें साथ में मिल जुल कर देखे थे सुनहरे सपने
कॉलेज का वक्त बीता और सब का साथ छूट गया
धीरे धीरे सबका आपस में संपर्क और नाता टूट गया
गुजरते वक्त के साथ सब प्रोफेशनल होते गए
चौबीसों घंटे सब अपने प्रोफेशन में खोते गए
भूलने लगे उन दिनों को जो अब कभी न लौट पाएँगे
उम्र के एक दौर में पुरानी यादें बनकर तड़पाएँगे
धीरे धीरे मेरे साथ मेरे सभी दोस्त पकने लगे हैं
अपने सफेद और उड़ते बालों को ढकने लगे हैं
ऐसा नहीं है कि पहले किसी वजह से जागते थे रातों में
लेकिन अब रातों में बेवजह जगने लगे हैं
उम्र ऐसी आ गई कि ना बुढ़ापा है और ना जवानी है
शरीर थकने लगा है लेकिन मन में अभी भी रवानी है
पापा, चाचा, ताऊ का किरदार निभाने लग गए है मगर
'दिल तो बच्चा है जी' गाते हुए अभी भी हसरतें पुरानी है
कभी जब तन्हा होते हैं तो याद कर लेते हैं पुराने दिन
देखते देखते फुर्र से कहाँ उड़ गए वो सुनहरे पल छिन
कभी कभी मन करता है कि उस दौर में फिर से लौट जाऊँ
सबके गले लगूँ, कुछ उनकी सुनूँ, कुछ अपनी सुनाऊँ
5. पकौड़ा पॉलिटिक्स में पिसता युवा हिंदी कविता
अपने जीवन को बनते देख जुआवजीरे आजम की इस सलाह से बहुत निराश आज का युवाकि पकौड़े तलना एक रोजगार हैजो पकौड़े नहीं तल सकता, सही मायनों में वही बेरोजगार है।
जब से बेरोजगारी के नए उपायों में पकौड़ा दर्शन लागू हुआतब बेरोजगारी का इलाज लगने लगा सिर्फ ईश्वर की दुआनेताओं के तो भाषण ही उनके शासन बन जाते हैंसत्ता के मद में ये बेरोजगारों से सिर्फ पकौड़े तलवाते हैं।
सभी नेता गण वादे करके क्यों मुकर जाते हैं?अपने किए हुए वादों को जुमला क्यों बतलाते हैं?ऐसा लगता है कि वादे करके मुकर जाना नेताओं का जन्मसिद्ध अधिकार हैतभी तो बेरोजगार, गरीब तथा आम आदमी का सम्पूर्ण जीवन ही बेकार है।
रोजगार का वादा करके जिन्हें मँझधार में छोड़ दियाअपना इच्छित लक्ष्य पाकर बेरोजगारों से मुँह मोड़ लियावादा था हर वर्ष करोड़ों नौकरियों का, कम से कम लाखों तो देतेउम्मीद बनाये रखने के लिए कुछ और जुमले ही कह देते।
हुक्मरान के अनुचरों की अगुवाई में आज घर-घर पकौड़ा गान हो रहा हैऐसा लगता है कि पकौड़ा ही बेरोजगारों का भगवान हो रहा हैवह दिन दूर नहीं जब पकौड़ा रोजगारेश्वर जैसी श्रद्धा पाएगारोजगार के पूरक श्रद्धेय पकौड़े को फिर कोई कैसे खाएगा?
गलियों से संसद तक “पकौड़ा रोजगार” का गुणगान बढ़ा हैऐसा लगता है कि आम आदमी पकौड़ा ज्ञान के लिए ही खड़ा हैकोई राज्यसभा में तो कोई अन्यत्र पकौड़ा भक्ति में लीन हुआसभी भक्तजनों का मन पकौड़ा चालीसा में पूर्णतया तल्लीन हुआ।
पकौड़े तलने वालों की शान में चार चाँद लगने लगेपकौड़े की रेहड़ी लगाने वालों से रातों रात लोग जलने लगेपकौड़ा टीवी तथा पकौड़ा न्यूज पर हर जगह इनके किस्से चलने लगेसमझदार है ये लोग जो शिक्षा में वक्त बिगाड़े बिना पकौड़े तलने लगे।
शायद जल्द ही “पकौड़ा रोजगार मंत्रालय” तथा “पकौड़ा रोजगार मंत्री” सामने आएँकई किस्म के पकौड़े तलवाकर “पकौड़ा रोजगार मंत्री” बेरोजगारों के हाथ थामते जाएँबेरोजगारों को केवल एक शर्त पर बाँटा जाएगा “पकौड़ा रोजगार लोन”केवल “जिओ डिजिटल लाइफ” के साथ आपको करना होगा एक फोन।
बेरोजगारों की सत्ता प्रमुखों से यही इल्तिजा है कि शिक्षा का मखौल ना उड़ाइएहर वर्ष करोड़ों रोजगार देने के जो वादे किए हैं बस उन्हें निभाइएरोजगार के अवसर ना देकर, सरकार की नाकामियों को पकौड़ों के पीछे मत छिपाइएबेरोजगारों को रोजगार चाहिए, उनसे रोजगार के नाम पर पकौड़े मत तलवाइए।
पकौड़े तलने के लिए उच्च शिक्षा की जरूरत नहीं होती हैउच्च शिक्षित युवा जब पकौड़े तलता है तो ज्ञान की देवी रोती हैपकौड़े तलना कोई गर्व की बात नहीं, यह तो पेट पालने की मजबूरी हैअगर इसमें गर्व नजर आता है, तो क्या, आज से हर नेता पुत्र के लिए पकौड़े तलना जरूरी है?
अपने जीवन को बनते देख जुआ
वजीरे आजम की इस सलाह से बहुत निराश आज का युवा
कि पकौड़े तलना एक रोजगार है
जो पकौड़े नहीं तल सकता, सही मायनों में वही बेरोजगार है।
जब से बेरोजगारी के नए उपायों में पकौड़ा दर्शन लागू हुआ
तब बेरोजगारी का इलाज लगने लगा सिर्फ ईश्वर की दुआ
नेताओं के तो भाषण ही उनके शासन बन जाते हैं
सत्ता के मद में ये बेरोजगारों से सिर्फ पकौड़े तलवाते हैं।
सभी नेता गण वादे करके क्यों मुकर जाते हैं?
अपने किए हुए वादों को जुमला क्यों बतलाते हैं?
ऐसा लगता है कि वादे करके मुकर जाना नेताओं का जन्मसिद्ध अधिकार है
तभी तो बेरोजगार, गरीब तथा आम आदमी का सम्पूर्ण जीवन ही बेकार है।
रोजगार का वादा करके जिन्हें मँझधार में छोड़ दिया
अपना इच्छित लक्ष्य पाकर बेरोजगारों से मुँह मोड़ लिया
वादा था हर वर्ष करोड़ों नौकरियों का, कम से कम लाखों तो देते
उम्मीद बनाये रखने के लिए कुछ और जुमले ही कह देते।
हुक्मरान के अनुचरों की अगुवाई में आज घर-घर पकौड़ा गान हो रहा है
ऐसा लगता है कि पकौड़ा ही बेरोजगारों का भगवान हो रहा है
वह दिन दूर नहीं जब पकौड़ा रोजगारेश्वर जैसी श्रद्धा पाएगा
रोजगार के पूरक श्रद्धेय पकौड़े को फिर कोई कैसे खाएगा?
गलियों से संसद तक “पकौड़ा रोजगार” का गुणगान बढ़ा है
ऐसा लगता है कि आम आदमी पकौड़ा ज्ञान के लिए ही खड़ा है
कोई राज्यसभा में तो कोई अन्यत्र पकौड़ा भक्ति में लीन हुआ
सभी भक्तजनों का मन पकौड़ा चालीसा में पूर्णतया तल्लीन हुआ।
पकौड़े तलने वालों की शान में चार चाँद लगने लगे
पकौड़े की रेहड़ी लगाने वालों से रातों रात लोग जलने लगे
पकौड़ा टीवी तथा पकौड़ा न्यूज पर हर जगह इनके किस्से चलने लगे
समझदार है ये लोग जो शिक्षा में वक्त बिगाड़े बिना पकौड़े तलने लगे।
शायद जल्द ही “पकौड़ा रोजगार मंत्रालय” तथा “पकौड़ा रोजगार मंत्री” सामने आएँ
कई किस्म के पकौड़े तलवाकर “पकौड़ा रोजगार मंत्री” बेरोजगारों के हाथ थामते जाएँ
बेरोजगारों को केवल एक शर्त पर बाँटा जाएगा “पकौड़ा रोजगार लोन”
केवल “जिओ डिजिटल लाइफ” के साथ आपको करना होगा एक फोन।
बेरोजगारों की सत्ता प्रमुखों से यही इल्तिजा है कि शिक्षा का मखौल ना उड़ाइए
हर वर्ष करोड़ों रोजगार देने के जो वादे किए हैं बस उन्हें निभाइए
रोजगार के अवसर ना देकर, सरकार की नाकामियों को पकौड़ों के पीछे मत छिपाइए
बेरोजगारों को रोजगार चाहिए, उनसे रोजगार के नाम पर पकौड़े मत तलवाइए।
पकौड़े तलने के लिए उच्च शिक्षा की जरूरत नहीं होती है
उच्च शिक्षित युवा जब पकौड़े तलता है तो ज्ञान की देवी रोती है
पकौड़े तलना कोई गर्व की बात नहीं, यह तो पेट पालने की मजबूरी है
अगर इसमें गर्व नजर आता है, तो क्या, आज से हर नेता पुत्र के लिए पकौड़े तलना जरूरी है?
6. तुम प्रचार करने कब आओगे हिंदी कविता
उसके मुँह से आती है आवाज, लगातारशिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और विकासवो बात ना दूजी करता हैउसकी इन्हीं बातों से जनता का ध्यान भटकता है,तुम कब इसको भटकाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
मिश्रा, वर्मा, बग्गा, ठाकुरसब राष्ट्रवाद में डूबे हैंजो हमसे सहमत नहींउसके नेक नहीं मंसूबे हैं,तुम कब ये आभास कराओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
शाह गिनाते सीएएवो बात स्कूल की करता हैशाह बताते शाहीन बागवो बात स्वास्थ्य की करता है,तुम कब इनसे भटकाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
सभी क्षत्रप आखिर कब तकउस आप प्रधान से टकराएँगेलगता है कि सीएए और शाहीन बागतब असली रंग दिखाएँगे,जब तुम इनको दोहराओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
बहुत कम समय है आ जाओसत्ता का वनवास मिटा जाओइस बार अगर तुम आओगेपिछला परिणाम ना पाओगे,बस तुम ही हमको जितवाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
पिछली बार ना सीएए था, ना शाहीन बागइस बार हैं मनमाफिक मुद्दे तमामहिंदुत्व रुपी लोहा गर्म है हथौड़ा मारोचुनाव रुपी वैतरणी से हमें तारो,तुम कब नैया पार लगाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
जिसने दिल्ली की सत्ता को साध लियाउसी ने हिंदुस्तान पर राज कियाकेंद्र की सत्ता के बाद भी कुछ कमी सी हैअजी, हमारे हाथ में अभी दिल्ली जो नहीं है,तुम कब दिल्ली दिलवाओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
यदि फिर भी समय ना माकूल हुआगर, इस बार भी परिणाम प्रतिकूल हुआतुम पर हार का लांछन ना आएगायह तो दिल्ली की फ्री फ्री जनता पर जाएगा,तुम कब भयमुक्त होकर आओगेहे तारणहारतुम प्रचार करने कब आओगे
उसके मुँह से आती है आवाज, लगातार
शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और विकास
वो बात ना दूजी करता है
उसकी इन्हीं बातों से जनता का ध्यान भटकता है,
तुम कब इसको भटकाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
मिश्रा, वर्मा, बग्गा, ठाकुर
सब राष्ट्रवाद में डूबे हैं
जो हमसे सहमत नहीं
उसके नेक नहीं मंसूबे हैं,
तुम कब ये आभास कराओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
शाह गिनाते सीएए
वो बात स्कूल की करता है
शाह बताते शाहीन बाग
वो बात स्वास्थ्य की करता है,
तुम कब इनसे भटकाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
सभी क्षत्रप आखिर कब तक
उस आप प्रधान से टकराएँगे
लगता है कि सीएए और शाहीन बाग
तब असली रंग दिखाएँगे,
जब तुम इनको दोहराओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
बहुत कम समय है आ जाओ
सत्ता का वनवास मिटा जाओ
इस बार अगर तुम आओगे
पिछला परिणाम ना पाओगे,
बस तुम ही हमको जितवाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
पिछली बार ना सीएए था, ना शाहीन बाग
इस बार हैं मनमाफिक मुद्दे तमाम
हिंदुत्व रुपी लोहा गर्म है हथौड़ा मारो
चुनाव रुपी वैतरणी से हमें तारो,
तुम कब नैया पार लगाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
जिसने दिल्ली की सत्ता को साध लिया
उसी ने हिंदुस्तान पर राज किया
केंद्र की सत्ता के बाद भी कुछ कमी सी है
अजी, हमारे हाथ में अभी दिल्ली जो नहीं है,
तुम कब दिल्ली दिलवाओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
यदि फिर भी समय ना माकूल हुआ
गर, इस बार भी परिणाम प्रतिकूल हुआ
तुम पर हार का लांछन ना आएगा
यह तो दिल्ली की फ्री फ्री जनता पर जाएगा,
तुम कब भयमुक्त होकर आओगे
हे तारणहार
तुम प्रचार करने कब आओगे
7. कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ राजस्थानी कविता
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँसाँची बात खूँ,अरे साँची बात खूँ खूँ खूँकमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
अरे हे... हे हेसवामणी में जीमबा गया, मोहल्ला का दो साडूलाडू खाताँ धाँसी आगी, गला में फँसगो लाडूअरे, साडू खाँस खल्डखल्ड खूँ खूँ खूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँसाँची बात खूँ,अरे साँची बात खूँ खूँ खूँकमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
अरे हे... हे हेरात में अल्डी घाल र सोगो, म्हेल टांग पर टांगसुबह अंधेर ऊठगो, जद मुर्गों दीन्यो बांगअरे, मुर्गों बोल्यो कुकड़क कूँ कूँ कूँकमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँसाँची बात खूँ,अरे साँची बात खूँ खूँ खूँकमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
अरे हे... हे हेगयो जोधपुर जूती ल्याबा, जूती देखी भोतजूती थोड़ी कल्डी आगी, चालता आव मोतअरे, जूती बोली चरमक चूँ चूँ चूँकमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँसाँची बात खूँ,अरे साँची बात खूँ खूँ खूँकमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
साँची बात खूँ,
अरे साँची बात खूँ खूँ खूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
अरे हे... हे हे
सवामणी में जीमबा गया, मोहल्ला का दो साडू
लाडू खाताँ धाँसी आगी, गला में फँसगो लाडू
अरे, साडू खाँस खल्डखल्ड खूँ खूँ खूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
साँची बात खूँ,
अरे साँची बात खूँ खूँ खूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
अरे हे... हे हे
रात में अल्डी घाल र सोगो, म्हेल टांग पर टांग
सुबह अंधेर ऊठगो, जद मुर्गों दीन्यो बांग
अरे, मुर्गों बोल्यो कुकड़क कूँ कूँ कूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
साँची बात खूँ,
अरे साँची बात खूँ खूँ खूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
अरे हे... हे हे
गयो जोधपुर जूती ल्याबा, जूती देखी भोत
जूती थोड़ी कल्डी आगी, चालता आव मोत
अरे, जूती बोली चरमक चूँ चूँ चूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
साँची बात खूँ,
अरे साँची बात खूँ खूँ खूँ
कमेड़ी बोली टरमक टूँ टूँ टूँ
8. चिमन्या बिमन्या लोटण पोटण राजस्थानी कविता
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रेओ, लोटण पोटणचलमडी भरल्या
कतत कात कतकतत कात कतकतत कात कत कत
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रेओ, लोटण पोटणचलमडी भरल्या
चिमन्यों बोल्यो बिमन्यों ल्यासी, बिमन्यों बोल्यो चिमन्योंअतरा में अठे पपल्यो आगो, साथ में बीक सुमन्यों
ओ भाया पपल्या रेओ भाया सुमन्या रेचलमडी भरल्या
कतत कात कतकतत कात कतकतत कात कत कत
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रेओ, लोटण पोटणचलमडी भरल्या
टुलळतो टुलळतो ग्यारस्यो आगो, आगो काळयो, झूंड्योआँक साथ बाकी ठलुआ, नंद्यों, माल्यो, डूंड्यो
ओ भाया झूंड्या रेओ भाया डूंड्या रेचलमडी भरल्या
कतत कात कतकतत कात कतकतत कात कत कत
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रेओ, लोटण पोटणचलमडी भरल्या
सारा मिलर नाचबा लागगा, कर दी उछळ कूदकूदम कादी में खाट टूटगी, साथ में ढुळगो दूध
ओ भाया नाचबाळाओ भाया कूदबाळाचलमडी भरल्या
कतत कात कतकतत कात कतकतत कात कत कत
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रेओ, लोटण पोटणचलमडी भरल्या
खुद ही ऊठ, चिलम काणी गयो, पग में फँसगा कपड़ासीधो जार चिलम पर पड्यो, चिलम का होगा टुकड़ा
अरे, चलमडी टूटगी रेचलमडी फूटगी रेरे कईयाँ पीऊँ
कतत कात कतकतत कात कतकतत कात कत कत
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रेओ, लोटण पोटणचलमडी भरल्या
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रे
ओ, लोटण पोटण
चलमडी भरल्या
कतत कात कत
कतत कात कत
कतत कात कत कत
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रे
ओ, लोटण पोटण
चलमडी भरल्या
चिमन्यों बोल्यो बिमन्यों ल्यासी, बिमन्यों बोल्यो चिमन्यों
अतरा में अठे पपल्यो आगो, साथ में बीक सुमन्यों
ओ भाया पपल्या रे
ओ भाया सुमन्या रे
चलमडी भरल्या
कतत कात कत
कतत कात कत
कतत कात कत कत
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रे
ओ, लोटण पोटण
चलमडी भरल्या
टुलळतो टुलळतो ग्यारस्यो आगो, आगो काळयो, झूंड्यो
आँक साथ बाकी ठलुआ, नंद्यों, माल्यो, डूंड्यो
ओ भाया झूंड्या रे
ओ भाया डूंड्या रे
चलमडी भरल्या
कतत कात कत
कतत कात कत
कतत कात कत कत
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रे
ओ, लोटण पोटण
चलमडी भरल्या
सारा मिलर नाचबा लागगा, कर दी उछळ कूद
कूदम कादी में खाट टूटगी, साथ में ढुळगो दूध
ओ भाया नाचबाळा
ओ भाया कूदबाळा
चलमडी भरल्या
कतत कात कत
कतत कात कत
कतत कात कत कत
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रे
ओ, लोटण पोटण
चलमडी भरल्या
खुद ही ऊठ, चिलम काणी गयो, पग में फँसगा कपड़ा
सीधो जार चिलम पर पड्यो, चिलम का होगा टुकड़ा
अरे, चलमडी टूटगी रे
चलमडी फूटगी रे
रे कईयाँ पीऊँ
कतत कात कत
कतत कात कत
कतत कात कत कत
ओ, चिमन्या रे बिमन्या रे
ओ, लोटण पोटण
चलमडी भरल्या
9. सोनू सूद नायक बन गया हिंदी कविता
कोरोना महामारी के इस डरावने दौर मेंजब चारों तरफ घूम रहे हैं यमदूततब वो लोगों की मदद कर रहा बनकर देवदूतउस इंसान का नाम है सोनू सूद, सोनू सूद
लॉकडाउन में लोगों को खाना खिलायापरदेसी मजदूरों को उनके घर भिजवायाबस तो बस, हवाई जहाज भी चलवा दियाइसने कई बिछुड़ों को फिर से मिलवा दिया
अब महामारी काफी विकराल रूप ले रही हैदवा के साथ-साथ दुआ भी बेअसर हो रही हैदुवाओं का ही आसरा है, दवा की कमी बता रहे हैंदवाओं के लिए भी अब लोग, इन पर ही भरोसा जता रहे हैं
बहुत से लोगों ने इस आपदा को अवसर बनाया हैपूरी उम्र में ना कमाया उससे अधिक कमाया हैमरीज अमीर हो या गरीब, जवान हो या बुजुर्ग, चाहे जैसा हैअवसरवादियों लिए तो जान की कीमत सिर्फ और सिर्फ पैसा है
जिनको करनी चाहिए थी मदद वो सभी गायब हो गएजिन्हें हमने बनाया था साहब ना जाने वो कहाँ खो गएइनकी जगह मदद कर ये "सूद" सहित दिलों में घर कर गयाफिल्मों का यह खलनायक "सोनू" ना जाने कब नायक बन गया
कोरोना महामारी के इस डरावने दौर में
जब चारों तरफ घूम रहे हैं यमदूत
तब वो लोगों की मदद कर रहा बनकर देवदूत
उस इंसान का नाम है सोनू सूद, सोनू सूद
लॉकडाउन में लोगों को खाना खिलाया
परदेसी मजदूरों को उनके घर भिजवाया
बस तो बस, हवाई जहाज भी चलवा दिया
इसने कई बिछुड़ों को फिर से मिलवा दिया
अब महामारी काफी विकराल रूप ले रही है
दवा के साथ-साथ दुआ भी बेअसर हो रही है
दुवाओं का ही आसरा है, दवा की कमी बता रहे हैं
दवाओं के लिए भी अब लोग, इन पर ही भरोसा जता रहे हैं
बहुत से लोगों ने इस आपदा को अवसर बनाया है
पूरी उम्र में ना कमाया उससे अधिक कमाया है
मरीज अमीर हो या गरीब, जवान हो या बुजुर्ग, चाहे जैसा है
अवसरवादियों लिए तो जान की कीमत सिर्फ और सिर्फ पैसा है
जिनको करनी चाहिए थी मदद वो सभी गायब हो गए
जिन्हें हमने बनाया था साहब ना जाने वो कहाँ खो गए
इनकी जगह मदद कर ये "सूद" सहित दिलों में घर कर गया
फिल्मों का यह खलनायक "सोनू" ना जाने कब नायक बन गया
10. ये रातों का सूनापन हिंदी कविता
ये रातों का सूनापन, ये सन्नाटाकब जाएगा मेरे मन सेकब तक चुराएगी नींदे मेरीये चिंताएँ।
क्यों सोचती हूँ उनके लिएजिन्होंने मुझे तोड़ा हैआज मैं उन्हीं लोगों के लिएव्याकुल हूँजिन्होंने मुझे यूँ इस हाल पे छोड़ा है।
क्या रिश्ते ऐसे होते हैंजो अपनों को यूँ ठुकराते हैंक्यूँ मुँह फेरा सबने मुझसेमैंने तो परायों को भी अपना मानादिए संस्कार माँ ने जोउन सबको जी जान से निभाया।
जन्म लिया जिस घर में मैंनेछोड़ आई उन अपनों कोइस घर में आकर त्याग दियाअपने सभी इच्छित सपनों को।
जो न किया माँ-बाप, भाई-बहन के लिएसब कुछ किया इन परायों के लिएकभी स्वीकारा नहीं दिल से इन्होंनेजिनको मैंने अपना माना।
क्या खता हुई मुझसेये समझ नहीं पाई हूँबहुत सी अनकही हरकतों से लगता हैमैं परायी थी और अभी भी पराई हूँ।
जब तक सर झुका करसारे आदेशों का अक्षरशः पालन कियातब तक सब खुश थे मुझसेलेकिन जब मैंने जीना चाहातो सबने मुझको ठुकराया।
ऐसी जगह पर भी मुझे मिलाकोई एक मेरा अपनाजो हाथ पकड़ लाया घर मेंवही समझता है मेरा सपना
उसने मुझे संबल देकर संभालाइस रिश्ते को जी करमन को खुश कर लेती हूँ।लेकिन फिर घबरा जाती हूँ
ये सोचकरक्यों हो गए सभी पराये मुझसेक्यों रिश्तों में खटास हुईक्यों वापस नहीं मिल जाते हममिल जुल कर रहें सभी एक साथसही मायने में यही जीवन है।
यही सोचकररातों को मैं सो नहीं पाती हूँक्या बिखरे रिश्ते कभी वापस जुड़ पायेंगेजो कर बैठे पराया मुझको
क्या कभी मुझे अपनाएँगेमन बार-बार यही पूछता है किये रातों का सूनापन, ये सन्नाटाकब जाएगा मेरे मन से।
ये रातों का सूनापन, ये सन्नाटा
कब जाएगा मेरे मन से
कब तक चुराएगी नींदे मेरी
ये चिंताएँ।
क्यों सोचती हूँ उनके लिए
जिन्होंने मुझे तोड़ा है
आज मैं उन्हीं लोगों के लिए
व्याकुल हूँ
जिन्होंने मुझे यूँ इस हाल पे छोड़ा है।
क्या रिश्ते ऐसे होते हैं
जो अपनों को यूँ ठुकराते हैं
क्यूँ मुँह फेरा सबने मुझसे
मैंने तो परायों को भी अपना माना
दिए संस्कार माँ ने जो
उन सबको जी जान से निभाया।
जन्म लिया जिस घर में मैंने
छोड़ आई उन अपनों को
इस घर में आकर त्याग दिया
अपने सभी इच्छित सपनों को।
जो न किया माँ-बाप, भाई-बहन के लिए
सब कुछ किया इन परायों के लिए
कभी स्वीकारा नहीं दिल से इन्होंने
जिनको मैंने अपना माना।
क्या खता हुई मुझसे
ये समझ नहीं पाई हूँ
बहुत सी अनकही हरकतों से लगता है
मैं परायी थी और अभी भी पराई हूँ।
जब तक सर झुका कर
सारे आदेशों का अक्षरशः पालन किया
तब तक सब खुश थे मुझसे
लेकिन जब मैंने जीना चाहा
तो सबने मुझको ठुकराया।
ऐसी जगह पर भी मुझे मिला
कोई एक मेरा अपना
जो हाथ पकड़ लाया घर में
वही समझता है मेरा सपना
उसने मुझे संबल देकर संभाला
इस रिश्ते को जी कर
मन को खुश कर लेती हूँ।
लेकिन फिर घबरा जाती हूँ
ये सोचकर
क्यों हो गए सभी पराये मुझसे
क्यों रिश्तों में खटास हुई
क्यों वापस नहीं मिल जाते हम
मिल जुल कर रहें सभी एक साथ
सही मायने में यही जीवन है।
यही सोचकर
रातों को मैं सो नहीं पाती हूँ
क्या बिखरे रिश्ते कभी वापस जुड़ पायेंगे
जो कर बैठे पराया मुझको
क्या कभी मुझे अपनाएँगे
मन बार-बार यही पूछता है कि
ये रातों का सूनापन, ये सन्नाटा
कब जाएगा मेरे मन से।
11. कुछ दिन तो उदयपुर में गुजार लो हिंदी कविता
अगर एक बार उदयपुर आ गए तो इसे भुला नहीं पाओगेजीवन भर के लिए कई खट्टी मीठी यादें साथ ले जाओगेले जाओगे मेवाड़ के स्वाभिमान और प्यार की सौगातयाद तो आयेंगे तुम्हें झीलों की नगरी में गुजारे हुए दिन रातसिटी पैलेस से पिछोला में जगनिवास और जगमंदिर का नजारादूध तलाई, म्यूजिकल गार्डन और करणी माता बुलाती है दुबाराअक्सर शहर का बाजार और तंग गलियां बन जाती हैं पहेलीअमराई और गणगौर घाट के साथ देख लो बागोर की हवेलीसुखाड़िया सर्किल से सहेलियों की बाड़ी होते हुए फतेहसागर की पालइस झील के आगोश में होती है सुबह, दोपहर और शाम बड़ी बेमिसालसर्पिलाकार सड़क से सज्जनगढ़ मानसून पैलेस की चढ़ाईबड़ी तालाब से बाहुबली हिल्स की ट्रेकिंग नही जाती भुलाईमोती मगरी और नीमच माता से इस रोमांटिक सिटी को निहार लोजीवन में कम से कम एक बार कुछ दिन तो उदयपुर में गुजार लो
अगर एक बार उदयपुर आ गए तो इसे भुला नहीं पाओगे
जीवन भर के लिए कई खट्टी मीठी यादें साथ ले जाओगे
ले जाओगे मेवाड़ के स्वाभिमान और प्यार की सौगात
याद तो आयेंगे तुम्हें झीलों की नगरी में गुजारे हुए दिन रात
सिटी पैलेस से पिछोला में जगनिवास और जगमंदिर का नजारा
दूध तलाई, म्यूजिकल गार्डन और करणी माता बुलाती है दुबारा
अक्सर शहर का बाजार और तंग गलियां बन जाती हैं पहेली
अमराई और गणगौर घाट के साथ देख लो बागोर की हवेली
सुखाड़िया सर्किल से सहेलियों की बाड़ी होते हुए फतेहसागर की पाल
इस झील के आगोश में होती है सुबह, दोपहर और शाम बड़ी बेमिसाल
सर्पिलाकार सड़क से सज्जनगढ़ मानसून पैलेस की चढ़ाई
बड़ी तालाब से बाहुबली हिल्स की ट्रेकिंग नही जाती भुलाई
मोती मगरी और नीमच माता से इस रोमांटिक सिटी को निहार लो
जीवन में कम से कम एक बार कुछ दिन तो उदयपुर में गुजार लो
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
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Hindi-Kavita