हिंदी कविताएँ भाग 1 - Hindi Poems Part 1, इसमें हिन्दी भाषा की कविताएँ सम्मिलित की गई हैं जिसमें अलग अलग मूड की कुल दस कविताएँ शामिल की गई हैं।
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1. हमारा तिरंगा हिंदी कविता
भारत की शान, हमारा तिरंगासबकी पहचान, हमारा तिरंगा
पूरब की आन, पश्चिम की बानउत्तर की शान, दक्षिण का मानभारतीयों की जान, हमारा तिरंगा
भारत की शान, हमारा तिरंगासबकी पहचान, हमारा तिरंगा
घर-घर पर जब तिरंगा, शान से फहराएमन में श्रद्धा, आस्था, देशप्रेम जगाएदेश की पहचान, हमारा तिरंगा
भारत की शान, हमारा तिरंगासबकी पहचान, हमारा तिरंगा
तिरंगे का अशोक चक्र, बहुत कुछ सिखाएसमय का महत्व, 24 भागों में बताएभारत की प्रगति दिखाए, हमारा तिरंगा
भारत की शान, हमारा तिरंगासबकी पहचान, हमारा तिरंगा
हम सब एक है, तिरंगा सिखाता हैअपने तीनों रंगो के, मायने बताता हैभारत महान जताए, हमारा तिरंगा
भारत की शान, हमारा तिरंगासबकी पहचान, हमारा तिरंगा
2. नहीं सोचा था हिंदी कविता
नहीं सोचा था,कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगाजब जीवन अंधकार में डूबता जायेगाकिसी भी ओर उजाला नजर नहीं आयेगामन हद से ज्यादा आशंकित हो जायेगागुजरता बीतता, एक एक पल डराएगा
नहीं सोचा था,कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगाजब कुछ भी समझ में नहीं आयेगामन हमेशा किसी सोच में डूबा रहेगामेहनत बेअसर और भाग्य रूठ जायेगालगेगा कि सोना भी छुआ तो मिट्टी बन जायेगा
नहीं सोचा था,कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगाजब तथाकथित घर और परिवार छूट जायेगाजैसे अकेला आया था, उसी तरह अकेला रह जायेगाउम्मीद और भरोसा, इस कदर टूट कर बिखर जायेगादिल अब किसी पर भी यकीन नहीं कर पायेगा
नहीं सोचा था,कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगाजब जीवन की दोपहर में दर-दर भटकता रह जायेगाजीने की इच्छा शक्ति से धीरे धीरे दूर होता जायेगातू अब तक समझ में नहीं आया, आगे भी नहीं आयेगाशायद यही नियति तेरी, तू एक दिन यूँ ही गुजर जायेगा
नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब जीवन अंधकार में डूबता जायेगा
किसी भी ओर उजाला नजर नहीं आयेगा
मन हद से ज्यादा आशंकित हो जायेगा
गुजरता बीतता, एक एक पल डराएगा
नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब कुछ भी समझ में नहीं आयेगा
मन हमेशा किसी सोच में डूबा रहेगा
मेहनत बेअसर और भाग्य रूठ जायेगा
लगेगा कि सोना भी छुआ तो मिट्टी बन जायेगा
नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब तथाकथित घर और परिवार छूट जायेगा
जैसे अकेला आया था, उसी तरह अकेला रह जायेगा
उम्मीद और भरोसा, इस कदर टूट कर बिखर जायेगा
दिल अब किसी पर भी यकीन नहीं कर पायेगा
नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब जीवन की दोपहर में दर-दर भटकता रह जायेगा
जीने की इच्छा शक्ति से धीरे धीरे दूर होता जायेगा
तू अब तक समझ में नहीं आया, आगे भी नहीं आयेगा
शायद यही नियति तेरी, तू एक दिन यूँ ही गुजर जायेगा
3. हथियार डालकर ना मरो हिंदी कविता
जब जीवन में निराशा और नाउम्मीदी बढ़ जाएजब चारों तरफ अंधकार दिखाई देने लग जाएजब हौसला पूरी तरह से पस्त होने लग जाएजब उम्मीद का सूरज अस्त होने लग जाए
तो एक बार जरूर गौर कर लेनाउन महाराणा प्रताप के जीवन परजिन्होंने अकबर की दासता के सुखों को त्यागकरस्वाभिमान और स्वतंत्रता के दुखों को अपनाकरवन-वन भटक कर, गुफाओं में रहकरभोजन की जगह घास की रोटी खाकरकभी अपने लक्ष्य से मुँह नहीं मोड़ा
प्रताप का पूरा जीवन भागदौड़ और संघर्षों में बीता हैएकलिंग, इनके कृष्ण और स्वाभिमान इनकी गीता हैजब-जब इनके बीवी बच्चों ने घास की रोटी खाई हैतब-तब ये भी टूटे हैं, इनकी भी अंतरात्मा घबराई हैकरुण दृश्य देखने के बाद, ये और मजबूती से खड़े हुएसब समस्याओं के बाद भी, रहे अपने लक्ष्य पर अड़े हुए
अब जरा गौर करना अपने जीवन परतौलना इसे महाराणा प्रताप के जीवन के साथफिर खुद से पूछना किक्या तुमने किसी राजवंश में जन्म लिया है?क्या तुम किसी रियासत के राजा रहे हो?क्या तुम्हें अपना राज्य गवाना पड़ा है?क्या तुम्हें अपने परिवार के साथ जंगल में भटकना पड़ा है?क्या तुमने अपने परिवार के साथ गुफाओं में रात बिताई है?क्या तुमने अपने बीवी, बच्चों को घास की रोटी खिलाई है?
महाराणा का जीवन, त्याग और बलिदान से ओतप्रोत हैजिसमें हल्दी घाटी का मैदान, अनंत ऊर्जा का स्रोत हैमहाराणा का संघर्ष और लक्ष्य, दोनों ही बहुत बड़े थेवो अपने लिए नहीं, अपनी मातृभूमि के लिए लड़े थेतुम अपने जीवन के लिए भी लड़ नहीं पा रहे होअसफलताओं का दोष किसी ओर को दिए जा रहे हो
क्या तुम्हारा संघर्ष महाराणा के संघर्ष से भी बड़ा है?क्या तुमसे लड़ने के लिए कोई बादशाह अकबर खड़ा है?अगर नहीं, तो फिर आत्मविश्वास में कमी क्यों हैं?अगर नहीं, तो फिर आँखों में अकसर नमीं क्यों है?महाराणा से प्रेरणा लेकर, सब कुछ फिर से शुरू करोसंघर्ष का नाम ही जीवन है, संघर्षों से ना डरो
सही है, सफलता में हस्त रेखाओं का भी योगदान होता हैलेकिन, वो लोग भी तो सफल होते हैं, जिनके हाथ नहीं होतेकहते हैं कि निरंतर कर्म करने से भाग्य बदल जाता हैचींटी का अथक परिश्रम, इसी बात को दिखलाता हैतुम कुछ कर सकते हो, अपनी मेहनत से इसे साबित करोमरना एक दिन सबको है, हथियार डालकर तो ना मरो
ये भी पढ़ें हिंदी कविताएँ भाग 2 - Hindi Poems Part 2
जब जीवन में निराशा और नाउम्मीदी बढ़ जाए
जब चारों तरफ अंधकार दिखाई देने लग जाए
जब हौसला पूरी तरह से पस्त होने लग जाए
जब उम्मीद का सूरज अस्त होने लग जाए
तो एक बार जरूर गौर कर लेना
उन महाराणा प्रताप के जीवन पर
जिन्होंने अकबर की दासता के सुखों को त्यागकर
स्वाभिमान और स्वतंत्रता के दुखों को अपनाकर
वन-वन भटक कर, गुफाओं में रहकर
भोजन की जगह घास की रोटी खाकर
कभी अपने लक्ष्य से मुँह नहीं मोड़ा
प्रताप का पूरा जीवन भागदौड़ और संघर्षों में बीता है
एकलिंग, इनके कृष्ण और स्वाभिमान इनकी गीता है
जब-जब इनके बीवी बच्चों ने घास की रोटी खाई है
तब-तब ये भी टूटे हैं, इनकी भी अंतरात्मा घबराई है
करुण दृश्य देखने के बाद, ये और मजबूती से खड़े हुए
सब समस्याओं के बाद भी, रहे अपने लक्ष्य पर अड़े हुए
अब जरा गौर करना अपने जीवन पर
तौलना इसे महाराणा प्रताप के जीवन के साथ
फिर खुद से पूछना कि
क्या तुमने किसी राजवंश में जन्म लिया है?
क्या तुम किसी रियासत के राजा रहे हो?
क्या तुम्हें अपना राज्य गवाना पड़ा है?
क्या तुम्हें अपने परिवार के साथ जंगल में भटकना पड़ा है?
क्या तुमने अपने परिवार के साथ गुफाओं में रात बिताई है?
क्या तुमने अपने बीवी, बच्चों को घास की रोटी खिलाई है?
महाराणा का जीवन, त्याग और बलिदान से ओतप्रोत है
जिसमें हल्दी घाटी का मैदान, अनंत ऊर्जा का स्रोत है
महाराणा का संघर्ष और लक्ष्य, दोनों ही बहुत बड़े थे
वो अपने लिए नहीं, अपनी मातृभूमि के लिए लड़े थे
तुम अपने जीवन के लिए भी लड़ नहीं पा रहे हो
असफलताओं का दोष किसी ओर को दिए जा रहे हो
क्या तुम्हारा संघर्ष महाराणा के संघर्ष से भी बड़ा है?
क्या तुमसे लड़ने के लिए कोई बादशाह अकबर खड़ा है?
अगर नहीं, तो फिर आत्मविश्वास में कमी क्यों हैं?
अगर नहीं, तो फिर आँखों में अकसर नमीं क्यों है?
महाराणा से प्रेरणा लेकर, सब कुछ फिर से शुरू करो
संघर्ष का नाम ही जीवन है, संघर्षों से ना डरो
सही है, सफलता में हस्त रेखाओं का भी योगदान होता है
लेकिन, वो लोग भी तो सफल होते हैं, जिनके हाथ नहीं होते
कहते हैं कि निरंतर कर्म करने से भाग्य बदल जाता है
चींटी का अथक परिश्रम, इसी बात को दिखलाता है
तुम कुछ कर सकते हो, अपनी मेहनत से इसे साबित करो
मरना एक दिन सबको है, हथियार डालकर तो ना मरो
4. फूलों को महक दी कुदरत ने हिंदी कविता
फूलों को महक दी कुदरत नेकाँटों को हमें महकाना हैजो काम किसी से हो ना सकावो काम हमें कर जाना है।
सूरज से उजाला क्यों मांगेचाँद सितारों से क्यों उलझेजीवन की अँधेरी रातों मेंअब खुद को हमें चमकाना है।
दौलत के नशे में चूर हो क्योंताकत पे बेहद मगरूर हो क्योंदुनिया है तमाशा दो दिन कासब छोड़ यहीं पर जाना है।
लफ्जों की भी कीमत होती हैलफ्जों का तुम सम्मान करोशायद वो हकीकत बन जाएजो लफ्ज अभी अफसाना है।
ऐ दोस्त बहारों का मौसमहर वक्त नहीं रहने वालाजो आज खिला है गुलशन मेंउस फूल को कल मुरझाना है।
फूलों को महक दी कुदरत ने
काँटों को हमें महकाना है
जो काम किसी से हो ना सका
वो काम हमें कर जाना है।
सूरज से उजाला क्यों मांगे
चाँद सितारों से क्यों उलझे
जीवन की अँधेरी रातों में
अब खुद को हमें चमकाना है।
दौलत के नशे में चूर हो क्यों
ताकत पे बेहद मगरूर हो क्यों
दुनिया है तमाशा दो दिन का
सब छोड़ यहीं पर जाना है।
लफ्जों की भी कीमत होती है
लफ्जों का तुम सम्मान करो
शायद वो हकीकत बन जाए
जो लफ्ज अभी अफसाना है।
ऐ दोस्त बहारों का मौसम
हर वक्त नहीं रहने वाला
जो आज खिला है गुलशन में
उस फूल को कल मुरझाना है।
5. सोशल मीडिया के सिपाही हिंदी कविता
जब से सोशल मीडिया आया हैफेसबुक व्हाट्सएप और ट्विटर का बुखारसभी तरफ छाया हैनशा इस कदर बढ़ गया हैनफरत का जहर हर तरफ फैल गया हैजीवन की आपाधापी मेंएक दौड़ सी लगी रहती हैहर मसला सोशल मीडिया पर सुलझाने के लिएएक होड़ सी लगी रहती है।
अगर बात देशभक्ति की हो तोहर कोई भगत सिंह बनकरशब्दों का असला लेकरसोशल मीडिया के परिसर मेंधमाके कर अपनी देशभक्ति साबित करता हैफर्क इतना है किभगत सिंह आजादी के लिएसूली पर चढ़ गए थेऔर ये सोशल मीडिया के क्रांतिकारीघर में बैठे-बैठेचाय कॉफी की चुस्कियों के साथवक्त की नजाकत को समझते हुएक्रान्ति को अंजाम देते हैं।
जब कोई आतंकवादी हमला होता है तोआवाम के अघोषित प्रतिनिधि बनकरपाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने के लिएरात-दिन सोशल मीडिया परपोस्ट लिखते हैंजो इनके विचारों से सहमत नहीं होउसे गद्दार और देशद्रोही बताकरतुरंत पाकिस्तान भेजते हैं।
इन्हें गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार,महंगाई, बिजली, पानी आदि सेकोई मतलब नहीं हैइन्हें शहीदों के परिवार को मिलने वालीउस सहायता से भी कोई मतलब नहीं हैजो किसी सरकार ने शहीद होने परउस परिवार के लिए घोषित की थीइन्हें सरकारी सहायता के लिएभटकती शहीद की वीरांगना, अबोध बच्चों और माँ कीउन अश्रु पूरित आँखों से भी कोई मतलब नहीं हैजो अपने पति, पिता और पुत्र को खोने के बादसम्मान की उम्मीद में तकती है।
खुफिया विभाग द्वाराआतंकवादी हमले के अंदेशे के पश्चात भीये सत्ता को उसके उस नाकारापन के लिएकभी नहीं कोसते हैंजिसकी वजह से आतंकवादी हमला हो जाता हैये अपने आप को सैनिकों का शुभचिंतक बताकरसिर्फ ढिंढोरा पीटते हैंऔर सैनिकों को घटिया खाना मिलने पर भीसत्ता के खिलाफ नहीं बोलते हैं।
शायद ये अपनी देशभक्ति कोअपने फायदे के तराजू में तौलते हैंतभी तो ये अधिकतर समयसिर्फ अपने फायदे के लिए मुँह खोलते हैंसोशल मीडिया के इन तथाकथित सिपाहियों मेंअमूमन वो लोग ज्यादा होते हैंजो सक्षम तथा अच्छे ओहदों पर होते हैंजिनके घरों से शायद एक भी सैनिक नहीं निकलता हैये क्या जाने जब कोई सैनिक मरता हैतो कई दिनों तक उसके घर में चूल्हा नहीं जलता है।
इनके हिसाब से वास्तविक युद्ध भीसोशल मीडिया की पोस्टों की तरह लड़ा जाता हैपरन्तु ये नहीं जानते हैं किबार्डर पर जब एक जिंदगी जंग लड़ती हैतब उसके पीछे कई जिंदगियाँरातों को जाग-जागकर भगवान सेउसकी सलामती की दुआ करती हैं।
सरकारी अवार्ड लौटाने वालों को लताड़करकलाकारों को फिल्मों से निकलवाकरकभी मंदिर-मस्जिदकभी हिन्दू-मुस्लिमकभी कश्मीर को लेकरकिसी को भी, कभी भीदेशद्रोही का तमगा तुरंत देकरअपनी चपलता का परिचय देते रहते हैं।
गाली-गलौच और अपशब्द हैं इनके प्रमुख हथियारजिनसे ये अपने सभी विरोधियों पर करते हैं वारराहुल को पप्पू, ममता को गालीकेजरीवाल को खुजली बताकर, बजाते हैं तालीहर वो शख्स जो सत्ता के विरोध में बोलता हैइनके द्वारा देशद्रोही कहलाकरइनके कहर को झेलता हैऐसा लगता है कि येविपक्ष विहीन भारत चाहते हैंतभी तो किसी न किसी मुद्दे परस्वघोषित नृप द्वारा आयोजितअश्वमेध यज्ञ के अश्व को घुमाते है।
आधुनिक नृप भीसोशल मीडिया की ताकत से वाकिफ हैतभी तो अश्वमेध की सफलता के लिएसेनानायकों को सौंपी जिम्मेदारी हैसेनानायक चौबीसों घंटेरणनीतिक तैयारियों के तहतचाणक्य के उपाय-चतुष्ठय को अपनाकरनए-नए मैसेज तथा पोस्ट रचकरसोशल मीडिया पर अश्वमेध कीसफलता सुनिश्चित करते हैंनृप और उसके सेवक, काफी चतुर और सजग हैजो स्वयं सेनानायकों को फॉलो करपल-पल की रणनीति और तैयारियों पर नजर रखते हैं।
मार्केटिंग की ताकत सेमिट्टी को सोना बनाकर बेचा जा सकता हैभारतीय बहुत भावुक होते हैं इसलिएभावनाओं से खेलकर सत्ता तकफिर से पहुँचा जा सकता हैमार्केटिंग के सभी हुनर अपनाकरअपनी जयकार करवाओहिन्दू शेर की उपाधि के साथ फिर से सत्ता पाओ।
जब से सोशल मीडिया आया है
फेसबुक व्हाट्सएप और ट्विटर का बुखार
सभी तरफ छाया है
नशा इस कदर बढ़ गया है
नफरत का जहर हर तरफ फैल गया है
जीवन की आपाधापी में
एक दौड़ सी लगी रहती है
हर मसला सोशल मीडिया पर सुलझाने के लिए
एक होड़ सी लगी रहती है।
अगर बात देशभक्ति की हो तो
हर कोई भगत सिंह बनकर
शब्दों का असला लेकर
सोशल मीडिया के परिसर में
धमाके कर अपनी देशभक्ति साबित करता है
फर्क इतना है कि
भगत सिंह आजादी के लिए
सूली पर चढ़ गए थे
और ये सोशल मीडिया के क्रांतिकारी
घर में बैठे-बैठे
चाय कॉफी की चुस्कियों के साथ
वक्त की नजाकत को समझते हुए
क्रान्ति को अंजाम देते हैं।
जब कोई आतंकवादी हमला होता है तो
आवाम के अघोषित प्रतिनिधि बनकर
पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने के लिए
रात-दिन सोशल मीडिया पर
पोस्ट लिखते हैं
जो इनके विचारों से सहमत नहीं हो
उसे गद्दार और देशद्रोही बताकर
तुरंत पाकिस्तान भेजते हैं।
इन्हें गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार,
महंगाई, बिजली, पानी आदि से
कोई मतलब नहीं है
इन्हें शहीदों के परिवार को मिलने वाली
उस सहायता से भी कोई मतलब नहीं है
जो किसी सरकार ने शहीद होने पर
उस परिवार के लिए घोषित की थी
इन्हें सरकारी सहायता के लिए
भटकती शहीद की वीरांगना, अबोध बच्चों और माँ की
उन अश्रु पूरित आँखों से भी कोई मतलब नहीं है
जो अपने पति, पिता और पुत्र को खोने के बाद
सम्मान की उम्मीद में तकती है।
खुफिया विभाग द्वारा
आतंकवादी हमले के अंदेशे के पश्चात भी
ये सत्ता को उसके उस नाकारापन के लिए
कभी नहीं कोसते हैं
जिसकी वजह से आतंकवादी हमला हो जाता है
ये अपने आप को सैनिकों का शुभचिंतक बताकर
सिर्फ ढिंढोरा पीटते हैं
और सैनिकों को घटिया खाना मिलने पर भी
सत्ता के खिलाफ नहीं बोलते हैं।
शायद ये अपनी देशभक्ति को
अपने फायदे के तराजू में तौलते हैं
तभी तो ये अधिकतर समय
सिर्फ अपने फायदे के लिए मुँह खोलते हैं
सोशल मीडिया के इन तथाकथित सिपाहियों में
अमूमन वो लोग ज्यादा होते हैं
जो सक्षम तथा अच्छे ओहदों पर होते हैं
जिनके घरों से शायद एक भी सैनिक नहीं निकलता है
ये क्या जाने जब कोई सैनिक मरता है
तो कई दिनों तक उसके घर में चूल्हा नहीं जलता है।
इनके हिसाब से वास्तविक युद्ध भी
सोशल मीडिया की पोस्टों की तरह लड़ा जाता है
परन्तु ये नहीं जानते हैं कि
बार्डर पर जब एक जिंदगी जंग लड़ती है
तब उसके पीछे कई जिंदगियाँ
रातों को जाग-जागकर भगवान से
उसकी सलामती की दुआ करती हैं।
सरकारी अवार्ड लौटाने वालों को लताड़कर
कलाकारों को फिल्मों से निकलवाकर
कभी मंदिर-मस्जिद
कभी हिन्दू-मुस्लिम
कभी कश्मीर को लेकर
किसी को भी, कभी भी
देशद्रोही का तमगा तुरंत देकर
अपनी चपलता का परिचय देते रहते हैं।
गाली-गलौच और अपशब्द हैं इनके प्रमुख हथियार
जिनसे ये अपने सभी विरोधियों पर करते हैं वार
राहुल को पप्पू, ममता को गाली
केजरीवाल को खुजली बताकर, बजाते हैं ताली
हर वो शख्स जो सत्ता के विरोध में बोलता है
इनके द्वारा देशद्रोही कहलाकर
इनके कहर को झेलता है
ऐसा लगता है कि ये
विपक्ष विहीन भारत चाहते हैं
तभी तो किसी न किसी मुद्दे पर
स्वघोषित नृप द्वारा आयोजित
अश्वमेध यज्ञ के अश्व को घुमाते है।
आधुनिक नृप भी
सोशल मीडिया की ताकत से वाकिफ है
तभी तो अश्वमेध की सफलता के लिए
सेनानायकों को सौंपी जिम्मेदारी है
सेनानायक चौबीसों घंटे
रणनीतिक तैयारियों के तहत
चाणक्य के उपाय-चतुष्ठय को अपनाकर
नए-नए मैसेज तथा पोस्ट रचकर
सोशल मीडिया पर अश्वमेध की
सफलता सुनिश्चित करते हैं
नृप और उसके सेवक, काफी चतुर और सजग है
जो स्वयं सेनानायकों को फॉलो कर
पल-पल की रणनीति और तैयारियों पर नजर रखते हैं।
मार्केटिंग की ताकत से
मिट्टी को सोना बनाकर बेचा जा सकता है
भारतीय बहुत भावुक होते हैं इसलिए
भावनाओं से खेलकर सत्ता तक
फिर से पहुँचा जा सकता है
मार्केटिंग के सभी हुनर अपनाकर
अपनी जयकार करवाओ
हिन्दू शेर की उपाधि के साथ फिर से सत्ता पाओ।
6. मैं नादान था हिंदी कविता
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहाकि परिवार एक मंदिर की तरह होता हैजिसमें कई देवी-देवताओं का वास होता हैआखिर मैं इस सच्चाई को क्यों नहीं समझ पायाकि परिवार की वजह से ही राम को बनवास होता है
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहाकि मेरे दिल को कोई पढ़ लेगाजान लेगा कि मुझमें कोई सनक नहीं हैबस एक ही कमी रह गई मुझ मेंकि मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं है
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहाकि दुनिया में कोई है जो मुझे जानता हैसुख में और दुख में मुझे अपना मानता हैमेरी आँखों से ही जान लेता है मेरे दिल का हालऔर मेरी हँसी को मुझसे ज्यादा पहचानता है
नादानी से निकल कर अब मैं ये जान चुका हूँदुनियादारी को हद से ज्यादा पहचान चुका हूँअपनो से ठोकरें खा कर इस बात को मान चुका हूँआज के युग में पैसा ही काबिलीयत का सबूत हैमैं अब अपनी काबिलीयत साबित करने की ठान चुका हूँ
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि परिवार एक मंदिर की तरह होता है
जिसमें कई देवी-देवताओं का वास होता है
आखिर मैं इस सच्चाई को क्यों नहीं समझ पाया
कि परिवार की वजह से ही राम को बनवास होता है
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि मेरे दिल को कोई पढ़ लेगा
जान लेगा कि मुझमें कोई सनक नहीं है
बस एक ही कमी रह गई मुझ में
कि मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं है
मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि दुनिया में कोई है जो मुझे जानता है
सुख में और दुख में मुझे अपना मानता है
मेरी आँखों से ही जान लेता है मेरे दिल का हाल
और मेरी हँसी को मुझसे ज्यादा पहचानता है
नादानी से निकल कर अब मैं ये जान चुका हूँ
दुनियादारी को हद से ज्यादा पहचान चुका हूँ
अपनो से ठोकरें खा कर इस बात को मान चुका हूँ
आज के युग में पैसा ही काबिलीयत का सबूत है
मैं अब अपनी काबिलीयत साबित करने की ठान चुका हूँ
7. साठ की उम्र में जीवन दर्शन हिंदी कविता
साठ का होने पर ये समझ आयाकि अगर अस्सी वर्ष की उम्र भी मानूँतो अब बीस ही बची हैजीवन धीरे-धीरे कब हाथ से फिसल गयाये सोच सोच करमन में खलबली सी मची है
गुजरे साठ वर्षों मेंक्या पाया और क्या खोयालौटकर अतीत मेंजब करता हूँ जीवन का आकलनगिनने लगता हूँ उपलब्धियों कोसिवाए वक्त कटने के कुछ नजर नहीं आता
किस-किस कार्य को उपलब्धि मानूँक्या-क्या गिनूँबचपन में नए खिलौने ही उपलब्धि थीजवानी में पैसा कमाना ही उपलब्धि थीलेकिन आज ना जाने क्योंकुछ भी उपलब्धि नजर नहीं आती
आज समझ में आ रहा हैकि ये जीवन बड़ा नश्वर हैयहाँ सिकंदर भी खाली हाथ ही रुखसत होता हैऔर जो माया मोह लोभ लालच मेंदिन रात उलझा रहता हैवो उम्र के इस दौर में भी अपना चैन खोता है
आज लगता है कि मैं जिन्हें उपलब्धियाँ समझ करदौड़ता रहा, भागता रहा, जिनके पीछे दिन रातकहीं वो माया रुपी कस्तूरी मृग तो नहीं थाजिसकी मरीचिका में भाग-भागकरपहुँच गया उस मोड़ पर जिसके आगेदूर दूर तक कोई रास्ता नजर नहीं आया
वक्त बड़ा संगदिल दोस्त हैजो चौबीसों घंटे साथ रहकर भीदोस्ती को नहीं निभाताचलता रहता है निरंतरमेरे थककर रुकने पर भीकभी मेरे लिए नहीं रुकता
आज जब गौर करता हूँकि इस दुनिया से मेरे जाने के बादकितनी पलकें भीगेगी मेरी याद मेंउंगलियों पर गिनती शुरू करने परमेरा अंगूठा मेरी उंगली परबमुश्किल कुछ दूरी तक ही चल पाया
साठ का होने पर ये समझ आया
कि अगर अस्सी वर्ष की उम्र भी मानूँ
तो अब बीस ही बची है
जीवन धीरे-धीरे कब हाथ से फिसल गया
ये सोच सोच कर
मन में खलबली सी मची है
गुजरे साठ वर्षों में
क्या पाया और क्या खोया
लौटकर अतीत में
जब करता हूँ जीवन का आकलन
गिनने लगता हूँ उपलब्धियों को
सिवाए वक्त कटने के कुछ नजर नहीं आता
किस-किस कार्य को उपलब्धि मानूँ
क्या-क्या गिनूँ
बचपन में नए खिलौने ही उपलब्धि थी
जवानी में पैसा कमाना ही उपलब्धि थी
लेकिन आज ना जाने क्यों
कुछ भी उपलब्धि नजर नहीं आती
आज समझ में आ रहा है
कि ये जीवन बड़ा नश्वर है
यहाँ सिकंदर भी खाली हाथ ही रुखसत होता है
और जो माया मोह लोभ लालच में
दिन रात उलझा रहता है
वो उम्र के इस दौर में भी अपना चैन खोता है
आज लगता है कि मैं जिन्हें उपलब्धियाँ समझ कर
दौड़ता रहा, भागता रहा, जिनके पीछे दिन रात
कहीं वो माया रुपी कस्तूरी मृग तो नहीं था
जिसकी मरीचिका में भाग-भागकर
पहुँच गया उस मोड़ पर जिसके आगे
दूर दूर तक कोई रास्ता नजर नहीं आया
वक्त बड़ा संगदिल दोस्त है
जो चौबीसों घंटे साथ रहकर भी
दोस्ती को नहीं निभाता
चलता रहता है निरंतर
मेरे थककर रुकने पर भी
कभी मेरे लिए नहीं रुकता
आज जब गौर करता हूँ
कि इस दुनिया से मेरे जाने के बाद
कितनी पलकें भीगेगी मेरी याद में
उंगलियों पर गिनती शुरू करने पर
मेरा अंगूठा मेरी उंगली पर
बमुश्किल कुछ दूरी तक ही चल पाया
8. वो सुबह कभी तो आएगी हिंदी कविता
कुछ लोग सपने बड़े संजोते हैफिर मैयत उनकी ढोते हैंसबके व्यंग बाण सहते हैंलेकिन चुप ही रहते हैं
सबको मनमौजी दिखते हैंप्रेम की कौड़ी में बिकते हैंसनकी भी समझे जाते हैंदिल ही दिल में सब पी जाते हैं
गम को गले लगाते हैंतनहाई में आँसू बहाते हैंईश्वर से ये कहते हैंहम धरती पर क्यों रहते हैं
क्यों सब हमको ठुकराते हैंक्यों गले नहीं लगाते हैंक्यों उपेक्षित से रह जाते हैंक्यों प्यार नहीं हम पाते हैं
सपने दिन रात सताते हैंअकेलेपन को गले लगाते हैंजिससे भी बतियाते हैंवो समझ हमें नहीं पाते हैं
कहने को सब का साथ हैसर पे सभी का हाथ हैफिर ऐसी क्या बात हैजो हर रात अमावस की रात है
जिस काम में भी हाथ डालते हैंउस काम का जनाजा निकालते हैंमेहनत पूरी करते हैंपर केवल हाथ मलते हैं
असफल होना कर्मों का फल लगता हैशायद, इसलिए कुछ भी नहीं फलता हैमन घुट घुट कर, तिल तिल कर, मरता हैपर जाने किस उम्मीद में जीवन चलता है
अब जीवन का वो मुकाम आ गयाजहाँ लोगों के जीवन में खुशी हैपर हमारे जीवन मेंआज भी छाई खामोशी है
बढ़ती खामोशी धीरे धीरे नकारात्मकता लाती हैअब जीवन किस काम का, यही बात बतलाती हैत्याग दे ये असफल जीवन, छोड़ दे सभी सुनहरे सपनेबारम्बार आँखों के सामने घूम जाते हैं कुछ चेहरे अपने
इन चेहरों की अश्रु पूरित कातर नजरे डोलती हैटकटकी लगाकर डबडबाई आँखें ये बोलती हैतुम्हारे बाद हमारा क्या होगा, हम कैसे जी पाएँगेदुनिया बड़ी बेरहम है, क्या हम सुखी रह पाएँगे
ये चेहरे ही जीवन बचाते हैंमरे हुए आत्मविश्वास को फिर से जगाते हैंउम्मीद की सुनहरी किरण फिर से दिखाते हैंनाउम्मीदी के अंधकार में जीवन का लक्ष्य बताते है
जीवन पर हमारा हक नहीं, यह ईश्वर की नेमत हैइसका चलते रहना ही खुदा की इबादत हैजिस दिन इस इबादत का अंत अपने आप होगाकेवल उस दिन ही आत्मा का परमात्मा से मिलाप होगा
सफलता, असफलता और भाग्य, उस ईश्वर के हाथों में हैबिना फल के कर्म करने का ज्ञान, हमेशा उसकी बातों में हैआज से जीवन को ईश्वर की अमानत समझकर जीना हैदुख रूपी जहर को, नीलकंठ बनकर खुशी खुशी पीना है
जीवन अनमोल है यह अब हमने ठान लियानियति को स्वीकार कर इसको अपना मान लियाचाहे कुछ भी हो जाए फिर से नई शुरुआत करनी हैवो सुबह कभी तो आएगी, गम की रात भी ढलनी है
कुछ लोग सपने बड़े संजोते है
फिर मैयत उनकी ढोते हैं
सबके व्यंग बाण सहते हैं
लेकिन चुप ही रहते हैं
सबको मनमौजी दिखते हैं
प्रेम की कौड़ी में बिकते हैं
सनकी भी समझे जाते हैं
दिल ही दिल में सब पी जाते हैं
गम को गले लगाते हैं
तनहाई में आँसू बहाते हैं
ईश्वर से ये कहते हैं
हम धरती पर क्यों रहते हैं
क्यों सब हमको ठुकराते हैं
क्यों गले नहीं लगाते हैं
क्यों उपेक्षित से रह जाते हैं
क्यों प्यार नहीं हम पाते हैं
सपने दिन रात सताते हैं
अकेलेपन को गले लगाते हैं
जिससे भी बतियाते हैं
वो समझ हमें नहीं पाते हैं
कहने को सब का साथ है
सर पे सभी का हाथ है
फिर ऐसी क्या बात है
जो हर रात अमावस की रात है
जिस काम में भी हाथ डालते हैं
उस काम का जनाजा निकालते हैं
मेहनत पूरी करते हैं
पर केवल हाथ मलते हैं
असफल होना कर्मों का फल लगता है
शायद, इसलिए कुछ भी नहीं फलता है
मन घुट घुट कर, तिल तिल कर, मरता है
पर जाने किस उम्मीद में जीवन चलता है
अब जीवन का वो मुकाम आ गया
जहाँ लोगों के जीवन में खुशी है
पर हमारे जीवन में
आज भी छाई खामोशी है
बढ़ती खामोशी धीरे धीरे नकारात्मकता लाती है
अब जीवन किस काम का, यही बात बतलाती है
त्याग दे ये असफल जीवन, छोड़ दे सभी सुनहरे सपने
बारम्बार आँखों के सामने घूम जाते हैं कुछ चेहरे अपने
इन चेहरों की अश्रु पूरित कातर नजरे डोलती है
टकटकी लगाकर डबडबाई आँखें ये बोलती है
तुम्हारे बाद हमारा क्या होगा, हम कैसे जी पाएँगे
दुनिया बड़ी बेरहम है, क्या हम सुखी रह पाएँगे
ये चेहरे ही जीवन बचाते हैं
मरे हुए आत्मविश्वास को फिर से जगाते हैं
उम्मीद की सुनहरी किरण फिर से दिखाते हैं
नाउम्मीदी के अंधकार में जीवन का लक्ष्य बताते है
जीवन पर हमारा हक नहीं, यह ईश्वर की नेमत है
इसका चलते रहना ही खुदा की इबादत है
जिस दिन इस इबादत का अंत अपने आप होगा
केवल उस दिन ही आत्मा का परमात्मा से मिलाप होगा
सफलता, असफलता और भाग्य, उस ईश्वर के हाथों में है
बिना फल के कर्म करने का ज्ञान, हमेशा उसकी बातों में है
आज से जीवन को ईश्वर की अमानत समझकर जीना है
दुख रूपी जहर को, नीलकंठ बनकर खुशी खुशी पीना है
जीवन अनमोल है यह अब हमने ठान लिया
नियति को स्वीकार कर इसको अपना मान लिया
चाहे कुछ भी हो जाए फिर से नई शुरुआत करनी है
वो सुबह कभी तो आएगी, गम की रात भी ढलनी है
9. कॉलेज लाइफ फिर से जिऊँ हिंदी कविता
उदयपुर मेरी जन्म स्थली नहीं, विद्या स्थली रही हैइस जैसा दूसरा शहर पूरी दुनिया में कहीं नहीं हैबहुत सीधे, सरल, भोले है लोग यहाँ केरखते है सभी को अपनी छत्र छाया में छुपा के
लेकिन फिर भी, गुजरे हुए दिन सभी को याद आते हैंये दिन अगर कॉलेज के हों, तो बहुत तड़पाते हैंआँखों के सामने पुराना मंजर घूम जाता हैपल दो पल के लिए मन खुशी से झूम जाता है
बचपन के दोस्तों और परिवार के बिनकॉलेज में था जब मेरा पहला दिनदिल था थोडा उदास और थोडा सा खिन्नलगता था, कैसे बीतेंगे मेरे ये पल छिन
कुछ दिन बीते, धीरे-धीरे मन बदलने लगाउदासी ढलने लगी और दिल मचलने लगानए यारों के साथ दूर होने लगी तनहाईउदयपुर की आबो हवा मेरे मन में समाई
दिन कॉलेज में और शाम को फतहसागर की पालयारों के साथ इधर उधर घूमते फिरते करते धमालपाल के चारों तरफ झुण्ड में बाइक से घूमनाबिना किसी की परवाह किये कहीं पर भी झूमना
पाल पे बैठे-बैठे हाथों से चाय का इशाराचाय में देरी बिलकुल ना थी गवाराकिसी के हाथों में होता था भुना हुआ भुट्टाकोई मारता था छुपा कर सिगरेट का सुट्टा
कई बार यहीं पर दिख जाते थे गुरुदेव हमारेवो हमें निहारे हम उन्हें निहारेगुरु शिष्य दोनों नजरे बचाकर अनदेखा कर जातेअगले दिन क्लास में इशारों में पूरा किस्सा दोहराते
सहेलियों की बाड़ी में सहेलियों को तकनाना जाने क्यों, दूर तलक पीछे पीछे चलनापलटकर देखे जाने पर अचानक से रुकनाजूते की डोरी को खोलकर उसको कसना
गुलाब बाग की मस्ती और पिछोला का जोशगन्ने के रस का बड़ा गिलास उड़ाता था होशचेतक सिनेमा की फिल्में और स्वप्नलोक का जुनूनकई बार अशोका में भी मिल जाता था स्वप्नलोक सा सुरूर
कंधे पर एप्रिन और मदमस्त हाथी सी चालयारों का साथ और रुतबा बनता था ढालबिना पैसे दिए टेम्पो पर लटकने का खुमारचाय की टपरी पे गपशप में सभी होते थे शुमार
सिटी पैलेस, गुलाब बाग में विदेशियों को देखनाटूटी फूटी अंग्रेजी में उल्टा-सीधा कुछ भी फेंकनाउदयापोल, सूरजपोल और देहली गेट का नजाराअब सिर्फ यादों में है, बहुत वर्षों से ना देख पाया दुबारा
जो गुजर गया वो एक सुन्दर सपना थामेरा कॉलेज और उदयपुर सब अपना थाजहाँ मिला अमिट प्यार और अपनापनउसी चाहत में आज भी तड़पता है मेरा मन
उम्र के साथ कई दोस्तों के ओहदे भी बड़े हो गए हैंपैसे की चाहत और दुनियादारी के मसले खड़े हो गए हैंमेरे दोस्तों को पुरानी जिंदगी याद तो आती होगीवर्षों में ही सही कभी-कभी तो आँखें भिगाती होगी
फतेहसागर, सुखाडिया सर्किल, सब वहाँ हैमगर मेरे पुराने साथी न जाने कहाँ हैबहुत बार दिल करता है कि वही पल फिर से जीऊँउन्हीं दोस्तों के साथ एक कप चाय फिर से पीऊँएक कप चाय फिर से पीऊँ
10. मैं हूँ विद्यार्थी हिंदी कविता
जय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थीआया शरण में तेरीअरज तू सुन ले मेरीदेखते देखते साल चला गयाजाते जाते मुझको जला गयाइस साल मैं पढ़ ना पायामजे भी कर ना पायाअब बेडा पार लगा दे माँमुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थीकिससे करूँ मेरे मन की बातदोस्त भी माथा पकडे रोये दिन रातमैंने बोला यार मैं तो पढ़ नहीं पायावो बोला यार मैं भी पढ़ नहीं पायासारे बोले यार हम तो पढ़ नहीं पाएकोरस में सारे रोये हाये हायेहाये को याहू में बदलवा दे माँमुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थीलगा था इस साल भीप्रमोट हो जाऊंगाबिना पढ़े लिखे हीपास हो जाऊँगाअगर एग्जाम हुईकुछ भी लिख नहीं पाऊंगामुझको प्रमोट करा दे माँमुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थीअगर एग्जाम हुईडब्बा गोल हो जायेगातेरा ये पक्का भक्तकहाँ मुँह छिपायेगादंडवत प्रणाम करकेनारियल चढाऊंगाअगरबत्ती जलाऊंगाभक्ति की शक्ति दिखा दे माँमुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थीजय हो माँ भारतीमैं हूँ विद्यार्थी ...
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
आया शरण में तेरी
अरज तू सुन ले मेरी
देखते देखते साल चला गया
जाते जाते मुझको जला गया
इस साल मैं पढ़ ना पाया
मजे भी कर ना पाया
अब बेडा पार लगा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
किससे करूँ मेरे मन की बात
दोस्त भी माथा पकडे रोये दिन रात
मैंने बोला यार मैं तो पढ़ नहीं पाया
वो बोला यार मैं भी पढ़ नहीं पाया
सारे बोले यार हम तो पढ़ नहीं पाए
कोरस में सारे रोये हाये हाये
हाये को याहू में बदलवा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
लगा था इस साल भी
प्रमोट हो जाऊंगा
बिना पढ़े लिखे ही
पास हो जाऊँगा
अगर एग्जाम हुई
कुछ भी लिख नहीं पाऊंगा
मुझको प्रमोट करा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
अगर एग्जाम हुई
डब्बा गोल हो जायेगा
तेरा ये पक्का भक्त
कहाँ मुँह छिपायेगा
दंडवत प्रणाम करके
नारियल चढाऊंगा
अगरबत्ती जलाऊंगा
भक्ति की शक्ति दिखा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी ...
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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Tags:
Hindi-Kavita