मर्जी से कोई भी नहीं बनना चाहता है छोटू - Reality of Child Labour in Hindi

मर्जी से कोई भी नहीं बनना चाहता है छोटू - Reality of Child Labour in Hindi, इसमें चाय की दुकानों, ढाबों, कारखानों आदि पर कार्यरत बच्चों की जानकारी है।

Reality of Child Labour in Hindi

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“छोटू” नाम से हम सभी परिचित हैं तथा आये दिन हम भी जाने अनजाने में इस नाम को पुकारते हैं। यह शब्द अधिकतर छोटे कद वाले लोगों को पुकारने में प्रयोग किया जाता हैं फिर चाहे वो उम्र में भले ही पुकारने वाले से दोगुनी उम्र के ही क्यों न हो।

अगर हम किसी को जानते नहीं है और उसे पुकारना है तो यकायक ही हमारे मुँह से छोटू नाम निकल जाता है अर्थात छोटू एक यूनिवर्सल नाम हो गया है जिस पर सभी का एकाधिकार होता है।

अधिकतर छोटू नाम हम उन बच्चों के लिए प्रयोग में लेते हैं जो किसी चाय की दुकान, रेस्टोरेंट, ढाबा, सब्जी का ठेला, जूस की दुकान, छोटा मोटा कारखाना आदि में कार्य करते हैं।

ये छोटू सुबह पाँच बजे से ही चाय की दुकान पर ग्राहकों को चाय देने और फिर चाय के झूठे गिलास धोने, रेस्टोरेंट और ढाबों पर भी चाय देने के साथ साथ झूठे बर्तनों को साफ करने, जूस की दुकान पर जूस देने के साथ साथ झूठे गिलास धोने का कार्य बखूबी करते हैं।

सबसे बड़ी दुर्दशा तो इनकी कारखानों में कार्य करने पर होती है जहाँ पर ये बंधुआ मजदूर की तरह दिन रात काम करते हैं और वहीं पर अघोषित कैद काटते हैं।

इनसे चौबीस घंटों में अठारह-अठारह घंटे काम करवाया जाता है और बदले में नाम मात्र का वेतन दिया जाता है। देश में बाल मजदूरी के खिलाफ कानून बना हुआ है परन्तु हम सभी सार्वजनिक जीवन में रोज इसकी धज्जियाँ उड़ते देखते हैं।

हम सभी इन छोटुओं पर अत्याचार होता देखकर भी अनदेखा कर देते हैं और खुद भी इस प्रकार से पेश आते है जैसे वो एक वयस्क कामगार हो। हमें सिर्फ और सिर्फ अपने काम से मतलब होता है और वैसे भी आज के युग में किसी के पास इतनी फुर्सत ही कहाँ है कि वो दूसरों के बारे में सोच सके।

क्या हमें कभी भी इन मासूम बच्चों में अपने बच्चों की छवि दिखाई नहीं देती है? क्या उन्हें देखकर हमारे मन में किसी भी प्रकार की करुणा नहीं जागती है? क्या हम इस बाजारीकरण की अंधी दौड़ में मानवता और इंसानियत को भुला बैठे हैं? हम इंसान होकर किसी दूसरे इंसान के कर्तव्यों और अधिकारों का हनन होता कैसे देख सकते हैं?

शायद हमारी मानवता और इंसानियत कहीं खो गई है और हम यह सोचकर तसल्ली कर लेते है कि “ये हमारा बच्चा थोड़े ही है और फिर ऐसे तो दुनिया में बहुत से बच्चे हैं हमने सब का ठेका थोड़े ही लिया है।” हम यह बात इस प्रकार सोचते हैं जैसे की हमने इस प्रकार के परोपकार पहले से बहुत कर रखे हैं।

कोई भी बच्चा अपनी मर्जी से छोटू नहीं बनना चाहता है और न ही उस बच्चे के माता पिता ऐसा चाहते होंगे। हर बच्चे को मजबूरी और कमजोर आर्थिक परिस्थितियाँ छोटू बनने पर मजबूर करती हैं।

छोटू बनने का यह मतलब नहीं है कि वह बच्चा बड़ा हो गया है और उसके बालपन की सारी इच्छाएँ समाप्त हो गई है। ये बच्चे भी स्कूल जाना चाहते हैं, खेलना चाहते हैं, आजादी चाहते हैं, माता पिता का दुलार पाना चाहते हैं। मजबूरी इनका बचपन समाप्त कर देती हैं और वक्त इन्हें चिढ़ाता सा प्रतीत होता है।

ये छोटू बहुत जल्दी अपनी उम्र से काफी बड़े होकर वयस्क सोच वाले हो जाते हैं। वैसे भी इनका सिर्फ नाम ही छोटू होता है वर्ना इनके काम तो बहुत बड़े होते हैं। ये अपने बचपन को कुचलकर उस उम्र में परिवार की जिम्मेदारी उठाते है जिस उम्र में दूसरे बच्चे इस बारे में कुछ नहीं समझते हैं।

इनमें से बहुत से बच्चे अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले होते हैं तो कई बच्चे अपने परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए काम करते हैं।

हमें इन छोटुओं की उमंगों और अभिलाषाओं को समझकर और इनमें अपने बच्चों की छवि को महसूस कर इनकी भलाई के लिए कुछ न कुछ कदम जरूर उठाना होगा। हमें देश में इस प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा करनी होगी कि फिर कोई बच्चा छोटू बनने पर मजबूर नहीं हो।

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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
Ramesh Sharma

My name is Ramesh Sharma. I love to see old historical monuments closely, learn about their history and stay close to nature. Whenever I get a chance, I leave home to meet them. The monuments that I like to see include ancient forts, palaces, stepwells, temples, chhatris, mountains, lakes, rivers etc. I also share with you the monuments that I see through blogs and videos so that you can also benefit a little from my experience.

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