स्वतंत्रता सेनानी पंडित बंशीधर शर्मा - Freedom Fighter Pandit Banshidhar Sharma in Hindi

स्वतंत्रता सेनानी पंडित बंशीधर शर्मा - Freedom Fighter Pandit Banshidhar Sharma in Hindi, इसमें स्वतंत्रता सेनानी बंशीधर शर्मा के बारे में जानकारी है।

Freedom Fighter Pandit Banshidhar Sharma in Hindi

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पंडित बंशीधर शर्मा का जन्म 1904 में आषाढ़ कृष्ण पक्ष एकादशी के दिन श्रीमाधोपुर के गोछल्डी में हुआ था।

इनके पिताजी का नाम पंडित बद्रीनारायण तथा माताजी का नाम श्रीमती गोरा देवी था। इनके माता पिता दोनों बहुत सुसंस्कृत, धार्मिक विचारों वाले संस्कारी लोग थे।

बंशीधर बाल्यकाल से ही बहुत प्रतिभाशाली थे तथा इन पर इनके माता पिता के उच्च आदर्शों तथा संस्कारों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा जिसकी वजह से इनकी प्रतिभा निखरती चली गई।

इनकी प्रतिभा किसी प्रकार की स्कूली शिक्षा की मोहताज नहीं रही जिसकी वजह से इन्होंने हिंदी, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी आदि भाषाओं तथा इतिहास का प्रारंभिक ज्ञान घर पर ही लेना शुरू कर दिया। बहुत ही अल्प समय में इन्होंने इन सभी में दक्षता प्राप्त कर ली।

इन्होंने ‘इंटर’ की पढ़ाई अजमेर के मेरवाड़ा बोर्ड से, ‘प्रभाकर’ की पढ़ाई पंजाब विश्वविद्यालय से तथा ‘शास्त्री’ की पढ़ाई वाराणसी (बनारस) विश्वविद्यालय से उच्च अंकों में पूर्ण करके अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।

शिक्षा दीक्षा पूर्ण होने के पश्चात इन्होंने झुंझुनू के पिलानी कस्बे में शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान की। 1929 में जब पंडित हीरालाल शास्त्री ने वनस्थली में जीवन कुटीर की स्थापना की तब इन्होंने सब कुछ छोड़कर पंडित शास्त्री के जीवन कुटीर के कार्यों में सुचारु रूप से हाथ बँटाना शुरू कर दिया।

यहाँ इन पर गाँधीजी के स्वावलंबी तथा श्रम पर आधारित जीवन जीने सम्बन्धी विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा तथा इन्हें इन्होंने अपने जीवन में उतार लिया।

पंडित हीरालाल शास्त्री के साथ लगभग दो वर्षों तक रहने के पश्चात ये पुनः श्रीमाधोपुर लौटे तथा इन्होंने 1931 में श्रीमाधोपुर में श्रमजीवी संघ स्थापित किया।

इस श्रमजीवी संघ के माध्यम से जनता में रचनात्मकता पैदा करने की कोशिश की गई तथा उसे श्रम से जुड़े हुए कार्य करके आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

श्रमजीवी संघ से जुड़े हुए लोगों को विभिन्न तरह के श्रम आधारित कार्य सिखाए जाते थे। इन्होंने श्रम को सर्वोपरि प्राथमिकता देकर श्रम प्रधान समाज की स्थापना करने का अथक प्रयास किया।

पंडित बंशीधर का स्वभाव बहुत ही सौम्य तथा सरल था। ये सभी की सहायता पूर्ण निस्वार्थ भाव से किया करते थे। इनकी कथनी तथा करनी में कभी भी कोई अंतर नहीं दिखा अर्थात ये जो कहते थे उसे हर प्रकार से पूर्ण करने का प्रयास भी करते थे।


इन्होंने हमेशा सामाजिक बुराइयों का विरोध किया तथा सर्वप्रथम अपने घर से मृत्यु भोज, छुआछूत, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा आदि बुराइयों को दूर कर समाज के सम्मुख एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया।

इनकी राजनीतिक, सामाजिक तथा रचनात्मक कार्यों में अत्यधिक रुचि थी जिसके परिणामस्वरूप ये श्रीमाधोपुर नगरपालिका बोर्ड के प्रथम सदस्य नियुक्त हुए।

ये राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सदस्य भी रहे हैं। इनकी धर्मपत्नी श्रीमती रामेश्वरी देवी को श्रीमाधोपुर नगरपालिका की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव हासिल हुआ।

इन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना प्रत्यक्ष योगदान दिया। 1939 में जयपुर प्रजामंडल द्वारा आयोजित सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेकर उसका नेतृत्व करने के कारण इनको गिरफ्तार कर लिया गया तथा बाद में इन्हें चार महीनों की सजा हुई। इनकी धर्मपत्नी ने भी सत्याग्रह में इनका पूर्ण साथ दिया।

पंडित बंशीधर दलित तथा आदिम जातियों पर लागू अमानवीय कानूनों के कारण बहुत दुखी तथा चिंतित रहते थे। उस समय जयपुर रियासत में जयराम पेशा कानून (jayram pesha rule) के माध्यम से आदिम जनजातियों पर बहुत अत्याचार होते थे। इन्होंने इस अमानवीय कानून को हटवाने के लिए आन्दोलन करने का निश्चय किया।

1945 में जयपुर में मीणा सुधार समिति की स्थापना हुई जिसके ये प्रथम सदस्य बने। इन्होंने एक जन आन्दोलन को संगठित कर उसकी शुरुआत की तथा इनके सतत तथा अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप जयराम पेशा जातियों का क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट रद्द हुआ।

1946 के लगभग इन्हें राजस्थान मीणा सेवा संघ का अध्यक्ष बनाया गया तथा लगभग इसी समय इन्हें अंतरिम सरकार के लिए क्षेत्रीय प्रतिनिधि के रूप में भी चुना गया। 1951 में इन्हें झुंझुनू जिला कांग्रेस कमिटी का प्रथम अध्यक्ष चुना गया।

ये राजनीतिक जीवन में भी पूर्ण रूप से निष्पक्ष निर्णय लिया करते थे जिसकी वजह से इन्होंने कांग्रेस में रहते हुए भी कांग्रेस की गलत नीतियों का कभी समर्थन नहीं किया।

इसी के परिणामस्वरूप इन्होंने 1975 में कांग्रेस द्वारा देश पर थोपे गए आपातकाल का भी मुखरता से कड़ा विरोध किया जिसकी परिणति यह हुई कि इन्हें तीन वर्षों का कारावास झेलना पड़ा।

उम्र के अंतिम पड़ाव पर इन्होंने सलादिपुरा में अपने दिन गुजारना तय किया तथा वहाँ रहने के लिए चले गए। यहाँ पर भी वो चैन से न बैठ कर जनसेवा में जुटे रहे।

यहाँ इन्होंने ऑस्ट्रिया के लोक सेवकों की सलाह पर वन सम्पदा में वृद्धि के लिए अंतरराष्ट्रीय शिविर लगाकर वृक्षारोपण के कार्य को अंजाम देकर जनसामान्य को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया।

इसी प्रकार की लोकसेवा के कार्य करते हुए 1977 में आषाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी के दिन इन्होंने अपना शरीर त्याग कर स्वर्गारोहण किया।

लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

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Ramesh Sharma

My name is Ramesh Sharma. I am a registered pharmacist. I am a Pharmacy Professional having M Pharm (Pharmaceutics). I also have MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA and CHMS. Usually, I travel at hidden historical heritages to feel the glory of our history. I also travel at various beautiful travel destinations to feel the beauty of nature. I write religious articles related to temples and spiritual places specially Khatu Shyamji also.

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