श्रीमाधोपुर का इतिहास - Shrimadhopur Ka Itihas

श्रीमाधोपुर का इतिहास - Shrimadhopur Ka Itihas, इसमें श्रीमाधोपुर कस्बे के इतिहास के साथ इसकी स्थापना के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।

Shrimadhopur Ka Itihas

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श्रीमाधोपुर कस्बा नीमकाथाना जिले में स्थित है जो कि जयपुर से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। व्यापारिक तथा सांस्कृतिक रूप से यह कस्बा अत्यंत समृद्धिशाली रहा है।

किसी समय कृषि तथा बर्तनों के लिए प्रसिद्ध यह कस्बा अब धीरे-धीरे अन्य क्षेत्रों में भी प्रगति के पथ पर अग्रसर है। जयपुर नगर की स्थापना 1727 ईस्वी में सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा की गई थी।

चौमूँ, अमरसर, अजीतगढ़, मूंडरू, मऊ, दिवराला, खंडेला तथा आसपास का क्षेत्र जयपुर राजदरबार के अंतर्गत आता था।

सवाई माधोसिंह प्रथम (1750 से 1768) के शासन काल में वर्तमान श्रीमाधोपुर के पास हाँसापुर तथा फुसापुर, जिनको वर्तमान में हाँसपुर तथा पुष्पनगर के नाम से जाना जाता है, के सामंतों ने 1760-61 ईस्वी के लगभग विद्रोह करके कर देना बंद कर दिया।

महाराजा सवाई माधोसिंह ने इन विद्रोही सामंतों का दमन कर लगान प्राप्त करने के लिए अपने प्रधान दीवान नोपपुरा निवासी बोहरा राजा श्री खुशाली राम जी को सैन्य टुकड़ी के साथ भेजा।

उस समय दीवान वित्तीय कार्य करने के अतिरिक्त सैन्य अभियानों में भी भाग लिया करते थे। खुशाली राम जी ने वर्तमान कचियागढ़ स्थान पर पहुँच कर अपना शिविर लगाया तथा उस स्थान पर एक कच्चा गढ़ भी बनवाया।

उसके पश्चात उन्होंने हाँसापुर तथा फुसापुर पर आक्रमण कर उनके सामंतों को परास्त करके कर देते रहने की शर्त स्वीकार करवाई।

वर्तमान में चौपड़ बाजार में जिस जगह शिवालय स्थित है, पहले उस जगह पर एक तालाब हुआ करता था। बोहरा जी ने इस तालाब की पाल पर एक खेजड़ी की डाली आरोपित की जो कि धीरे-धीरे हरी भरी होकर वृक्ष का रूप लेने लग गई।

इस प्रकार की उर्वरा भूमि को देखकर बोहरा जी के मन में यहाँ पर नगर बसाने की अभिलाषा जागृत हुई।

तत्पश्चात 1761 में वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) को बोहरा राजा श्री खुशाली राम जी ने श्रीमाधोपुर नगर की स्थापना उसी खेजड़ी के वृक्ष की जगह पर की।


यह खेजड़ी का पेड़ आज भी नगर के बीचो-बीच चौपड़ बाजार में शिवालय के पीछे तथा हनुमान मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति के निकट स्थित है।

यह पेड़ श्रीमाधोपुर के विकास का एक मूक गवाह है जो विगत ढाई शताब्दी से भी अधिक समय से श्रीमाधोपुर के इतिहास को अपने आगोश में समेटे निःशब्द खड़ा है।

यह पेड़ एक पेड़ ना होकर श्रीमाधोपुर की धरोहर है जिसे श्रीमाधोपुर वासियों की उपेक्षा के पश्चात पता नहीं किस शक्ति ने अभी भी हरा भरा रखकर खड़ा कर रखा है।

यह पेड़ श्रीमाधोपुर की पहचान होनी चाहिए थी परन्तु ना तो स्थानीय प्रशासन और ना ही श्रीमाधोपुर के किसी निवासी को अपनी इस धरोहर की परवाह है।

इस नगर का नाम जयपुर महाराजा सवाई माधोसिंह के नाम पर श्रीमाधोपुर रखा गया। वैसे भी श्री माधव का सम्बन्ध लक्ष्मी नारायण भगवान से होता है तथा नामकरण के वक्त इस बात का भी विशेष ध्यान रखा गया था।

श्रीमाधोपुर नगर का विन्यास नगर नियोजन की वैज्ञानिक पद्धति को पूर्णतया ध्यान में रखकर किया गया था। नगर के चारों तरफ परकोटा बनाना तय हुआ तथा उसके लिए चारों दिशाओं में बारह बुर्ज तथा चार विशाल दरवाजों का निर्माण करवाया जाना था।

प्रथम दरवाजे का निर्माण नगर के दक्षिण में हुआ तथा उसमें बालाजी का मंदिर भी स्थापित हुआ जिसके कारण इसे दरवाजे वाले बालाजी के नाम से जाना जाता है।

श्रीमाधोपुर को बसाते समय जयपुर का नक्शा ध्यान में रखा गया था। जिस प्रकार जयपुर में सभी सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती है, ठीक उसी प्रकार श्रीमाधोपुर में भी सभी सड़कें समकोण पर काटती है।

नगर नियोजन में श्रीमाधोपुर को जयपुर की प्रतिकृति भी कहा जा सकता है।

सर्वप्रथम श्री गोपीनाथजी का मंदिर, गढ़, पंडित खुशाली राम मिश्र की हवेली तथा चौपड़ में बड़ा शिवालय आदि के निर्माण कार्य को प्रारंभ करवाकर नगर की स्थापना के कार्य को शुरू किया गया।

आज श्रीमाधोपुर नगर लगभग 262 वर्ष का हो चुका है। हम सभी को इसके इतिहास से परिचित होकर इसकी धरोहरों को सहेज कर रखने की आवश्यकता है तथा जिसके लिए सभी श्रीमाधोपुर वासियों को प्रयासरत रहना होगा।

आधुनीकरण की आँधी से सभी ऐतिहासिक स्थानों को बचाकर उन्हें अपने मौलिक स्वरूप में रखना हम सभी की जिम्मेदारी है जिसे हम सभी को निस्वार्थ निभाना होगा।

सभी श्रीमाधोपुर वासियों को प्रत्येक अक्षय तृतीया के दिन शिवालय में खेजड़ी के वृक्ष के नीचे इकट्ठा होकर इस दिन को धूमधाम से श्रीमाधोपुर की स्थापना दिवस के रूप में मनाना चाहिए।

श्रीमाधोपुर शब्द कैसे लिखते हैं? - How do you spell Shrimadhopur?


श्रीमाधोपुर के सम्बन्ध में एक विशेष बात ये भी है कि हम श्रीमाधोपुर शब्द को कैसे लिखेंगे? श्रीमाधोपुर की सही स्पेलिंग Shri Madhopur है लेकिन ज्यादातर जगह इसे Sri Madhopur नाम से लिखा जाता है जो कि गलत है। इसलिए आपको श्रीमाधोपुर शब्द लिखते समय इसकी सही स्पेलिंग (Shri Madhopur) लिखनी चाहिए।

श्रीमाधोपुर के इतिहास का वीडियो - Video of History of Shrimadhopur



श्रीमाधोपुर की फोटो - Photos of Shrimadhopur


Shrimadhopur Map

लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मैं एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट हूँ। मेरी क्वालिफिकेशन M Pharm (Pharmaceutics), MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA और CHMS है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

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